रुनझुन को शुरू से ही हम सब दादी अम्मा बुलाते थे... नन्ही सी बच्ची लेकिन बातें बड़ी-बड़ी, हर काम बहुत ही संभाल के, बेहद सलीके और संजीदगी के साथ करती | सफाई पसंद इतनी की कुछ भी खाते या पीते वक़्त रुमाल हाथ में रखना पड़ता, ज़रा भी मुँह में लगना या गिरना नहीं चाहिए, बिना सैंडल या चप्पल के पाँव ज़मीं पर न रखती | यही नहीं किसी भी चीज़ से डरना तो वो जानती ही नहीं थी सिवा चोट के... जहाँ भी उसे गिरने का खतरा नज़र आता, वहाँ क़दम ही न बढ़ाती और इसीलिए उसे चोट भी बहुत कम लगती और अगर कभी हलकी सी खरोच आ ही जाती तो फिर "चोट-चोट" कहकर दिन-भर हर किसी को दिखाती फिरती, लेकिन इन सबसे उसकी स्फूर्ति में कहीं कोई कमी नहीं आती, पूरी सावधानी के साथ वो अपनी कलाबाजियों में पूरी तरह संलग्न रहती...
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ये देखिये रुनझुन की फेवरेट जगह |
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अब तो बेटी को इसपर चढ़ना भी आ गया था |
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ये है सबके साथ बराबरी में बैठने के लिए किया गया जुगाड़ |
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हमउम्र अनिकेत मामा को प्यारा सा अप्पा |
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और अब कुछ कलाबाजियाँ! |
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सब-कुछ उल्टा-पुल्टा!!! |
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"कॉकरोच!" रुनझुन की जिज्ञासा का बहुत बड़ा विषय |
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और ये देखिये दीवार पर छिपकली ने कॉकरोच को पकड़ लिया... रुनझुन इस दृश्य को अंत तक बहुत ही विस्मय और दुख के साथ देखती रही... |
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अरे ये क्या! ... पर्स लेकर बेटी तो चली शॉपिंग करने ... |
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पर अब आगे कैसे बढ़े!...आगे तो सीढ़ी है!!! |
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भला अब क्या हुआ! बेटी ने ऐसा क्या देख लिया!!! |
अब इतने अरसे बाद ये बात तो हमें भी याद नहीं, हम तो बस बेटी के आज के साथ उसके कल को भी इस ब्लॉग के माध्यम से साथ-साथ जिए जा रहे हैं...
अगर सब दादी अम्मा बुलाते थे तो दादी अम्मा को क्या बुलाते हो?
ReplyDeleteअंकल, मैं अपनी दादी को दीदा बुलाती हूँ
ReplyDeleteअरे! दीदा तो हमारे यहाँ लडाई में आँखों के लिये बोला जाता है, बहुत अच्छे लगे रहो।
ReplyDeleteKitti sari shararaten aur baten..pyari lagin.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सचित्र संस्मरण| धन्यवाद|
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