हेलो फ्रेंड्स !
मेरी गर्मी की छुट्टियाँ बस कुछ ही दिनों में शुरू होने वाली हैं... मैं तो बहुत excited हूँ... गर्मी की छुट्टियाँ मतलब रुटीन से एकदम अलग हटकर... लगभग एक महीने तक बिलकुल अलग दिनचर्या... बिलकुल अलग तरह की मस्ती... मैं तो मार्च का महीना आते ही गर्मी की छुट्टियों का इंतज़ार शुरू कर देती हूँ... अ-अ-अ-अ लेकिन इस साल की छुट्टियाँ तो अभी हुई नहीं... कोई बात नहीं चलिए आपको पिछले साल की गर्मी की छुट्टियों के बारे में बताती हूँ...
हमेशा की तरह पिछली बार भी गर्मी की छुट्टियों में मैं अपनी नानी के घर बनारस गई थी और मेरी छुट्टियों का ज़्यादातर समय तरह-तरह की किताबें पढ़ने, ड्राइंग करने या फिर अपनी छोटी बहना (मेरे मामा की बेटी) के साथ खेलने में बिताती थी... मम्मी ने मेरे लिए ढेर सारी बुक्स खरीदी थीं... उन्ही बुक्स में से एक कहानियों का संकलन था--"दादी का पंचतंत्र" और इन कहानियों के लेखक हैं- डा0 श्रीप्रसाद... इनकी कविता "हल्लम-हल्लम हौदा हाथी" मैं बचपन में बड़े चाव से सुना करती थी... एक दिन जब मैं ये किताब पढ़ रही थी, तभी प्रतिमा मौसी ने मुझे बताया कि अगर मैं चाहूँ तो मैं श्रीप्रसाद नाना जी से मिल सकती हूँ... ये बात पता चलते ही मैं तो खुशी से झूम उठी... अगले दिन हम श्रीप्रसाद नाना जी के घर गए... उन्हें देखकर तो मैं आश्चर्य में पड़ गई कि नाना जी इतने बड़े होने के बाद भी हम बच्चों के लिए कविताएँ और कहानियाँ कैसे लिख लेते हैं क्योंकि वो सब कविताएँ और कहानियाँ तो बिलकुल हम बच्चों जैसी ही होती हैं.... और आपको पता है... नाना जी ने हमें अपनी प्रकाशित कई पुस्तकें दिखाईं उन सभी की कविताएँ और कहानियाँ बहुत ही अच्छी थीं... बिलकुल हम बच्चों के लिए... नाना जी ने हमें अपनी मिनी लाइब्रेरी भी दिखाई... उनके लिखने का स्थान जहाँ बैठकर वो इतना सुन्दर बाल साहित्य लिखते हैं वो जगह भी हमें दिखाई... वो भी हमसे मिलकर बहुत खुश हुए... उन्होंने मुझसे खूब सारी बातें की... और उन्होंने अपनी कई कविताएँ खुद गाकर मुझे सुनाईं... सबसे पहले उन्होंने मेरी फेवरेट कविता सुनाई.... कौन सी ????.... आप खुद ही देख लीजिए....
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हल्लम-हल्लम हौदा, हाथी चल्लम-चल्लम| हम बैठे हाथी पर, हाथी हल्लम-हल्लम||
लंबी-लंबी सूँड, फटाफट फट्टर-फट्टर| लंबे-लंबे दाँत, खटाखट खट्टर-खट्टर||
भारी-भारी मूँड, मटकता झम्मम-झम्मम| हल्लम-हल्लम हौदा, हाथी चल्लम-चल्लम||
पर्वत जैसी देह, थुलथुली थल्लल-थल्लल| हालर-हालर देह हिले जब हाथी चल्लल||
खम्भे जैसे पाँव धपाधप, पड़ते धम्मम| हल्लम-हल्लम हौदा, हाथी चल्लम-चल्लम||
हाथी जैसी नहीं सवारी अग्गड़-बग्गड़| पीलवान पुच्छ्न बैठा है बाँधे पग्गड़||
बैठे बच्चे बीस, सभी हम डग्गम-डग्गम| हल्लम-हल्लम हौदा, हाथी चल्लम-चल्लम||
दिन भर घूमेंगे हाथी पर, हल्लर-हल्लर| हाथी दादा ज़रा नाच दो थल्लर-थल्लर||
अरे नहीं हम गिर जायेंगे, घम्मम-घम्मम| हल्लम-हल्लम हौदा, हाथी चल्लम-चल्लम||
---डा0 श्रीप्रसाद
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वैसे तो ये कविता मैंने बचपन से ही बहुत बार धीरज मामा के मुँह से सुनी है और मुझे थोड़ी-थोड़ी याद भी है लेकिन श्री प्रसाद नानाजी के मुँह से सुनने में और भी ज़्यादा मज़ा आया... इसके अलावा उन्होंने और भी कई कविताएँ सुनाईं... इतना ही नहीं किस घटना से प्रेरित होकर कौन सी कविता बनी या फिर कौन सी कविता उनके बचपन के किसी संस्मरण से जुड़ी है... ऐसी बहुत सी बातें... कविताओं और कहानियों के पीछे की ढेर सारी कहानियाँ भी उन्होंने हमें सुनाईं... उनसे ये सारी बातें करना बहुत ही रोचक लग रहा था... मैं तो उनकी बातों में खो गयी थी... मन कर रहा था बस यूँ ही ढेर सारी बातें करती जाऊँ लेकिन उनकी तबीयत कुछ ठीक नहीं थी और डॉक्टर ने उन्हें ज़्यादा बोलने के लिए मना किया था... नानी जी (उनकी पत्नी) बीच-बीच में उनको याद दिलाती और थोड़ा आराम करने को कह रही थी... अब-तक धीरे-धीरे रात होने लगी थी और हमें वापस भी जाना था... चलने से पहले मैंने नानाजी को एक पेन गिफ़्ट की जो मैं स्पेशियली उनके लिए ले गयी थी... वो बहुत खुश हुए... उन्होंने मुझे खूब सारा आशीर्वाद दिया और कहा कि-- "अगली बार जब बनारस आना तो अपनी लिखी चीज़े भी साथ ले आना और मुझे दिखाना", मैं इस बार भी जब वहाँ जाऊंगी तो उनसे ज़रूर मिलूँगी... लेकिन हाँ इस बार वहाँ जाने पर बहुत दुःख भी होगा क्योंकि इस बीच नानी जी (उनकी पत्नी) गुज़र गयीं... घर में उनकी कमी बहुत खलेगी... पिछली बार वो भी पूरे समय हम लोगों के साथ थीं और हमारी हर बात-चीत में पूरी तरह से शामिल थीं... इतना ही नहीं लाख मना करने पर भी उन्होंने बड़े प्यार से हमें नाश्ता कराया था... ये सब याद करके मुझे बहुत दुःख भी होता है और सोचती हूँ कि जब सिर्फ़ एक बार मिलकर ही मुझे इस समाचार से इतना दुःख हो रहा है तो नानाजी को कैसा लग रहा होगा... वो तो कितने सालों से उनके साथ ही थीं... आज उनकी बातें करते हुए, उन्हें याद कर, मुझे बहुत खराब लग रहा है... इसलिए अब चलती हूँ... बाद में फिर मिलूँगी मूड ठीक होने के बाद... तब-तक आप देखिये ये कुछ फोटोग्राफ्स उस मुलाकात की.....
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डा. श्रीप्रसाद नानाजी और मैं !!! |
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अद्भुत गौरव के पल !!! |
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नानाजी, नानीजी और मम्मी के साथ |
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प्रतिमा मौसी और नानाजी के साथ खुशी के पल |
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नानाजी की मज़ेदार कविताओं का रसास्वादन |
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ये देखिये, बच्चों की कविताएँ पढ़ते हुए बच्चों जैसे ही मगन नानाजी |
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नानाजी की बातों में खोई मैं |
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नानाजी के साथ सलीम मामा और मैं |
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नानाजी से मिलकर, उनसे प्यारी-प्यारी बातें करके अभिभूत मैं |
प्यारी रुनझुन ,तुमने सचमुच एक सुन्दर अनुभव जीने का अवसर पाया.....और लगता है कि इस मुलाकात के बाद तुम्हारे भीतर छुपे लेखक और कवि ने भी अपनी पहचान पाई...है न....इस बार तुम्हारे बनारस आने पर एक बार फिर हमारी कोशिश होगी डॉ० श्रीप्रसाद नाना जी से तुम्हें मिलवाने की...!
ReplyDeleteGOD BLESS YOU.............
बधाई रुनझुन ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ।।
वाह...बहुत सुन्दर, सार्थक और सटीक प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
bahut achachha laga .....jaanti ho ham kitane bhi budhe ho jaaye lekin hamlogo ke ander ek bachha chhupa rahta hai vo kabhi nahi budhha hota ..... bare hone per hamlog use jaberjasti shant kiye rahte hai..i mujhe ab ye nahi kerna .vo nahi kerna .kyuki ham bare jo ho gaye hai .lekin sach maano to mai teri mummy se jayada tujhe aur sarthak ko to bahut hi miss kerti hu ..kyuki tumlogo ke sath mai bhi bahut masti ki ..maano mera bachapan wapash aa gaya ho ....god bless u !
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ReplyDeleteरुनझुन जी इस तपती गर्मी में आप बनारस थीं इसीलिए उपस्थिति नहीं रही आप की...... तप आप ने किया और नाना जी से मिल हम सब भी लिए ....आप को बहुत धन्यवाद डॉ श्री प्रसाद नाना जी , नानीजी की और लम्बी उम्र हो और वे बाल जगत को संवारते रहें उनका कोई ब्लॉग भी है तो लिंक देना ...पर्वत जैसी देह थुल थुली थल्लम थल्लम ...मजा आ गया
ReplyDeleteजय श्री राधे
भ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
कल 01/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
अंतर्राष्ट्रीय बालदिवस पर हार्दिक शुभ कामनाएँ।
ReplyDeleteश्रीप्रसाद जी की रचनाएं तो बचपन से बालभारती अय्र अन्य पत्रिकाओं में पढ़ता आ रहा हूँ। एक बार श्री जितेन्द्रनाथ मिश्र जी के वार्षिक कार्यक्रम में मुलाकात और बात भी हुई थी, यहाँ उनके बारे में पढ़कर और कविता से पुनः रूबरू होकर बहुत अच्छा लगा...
ReplyDeleteउम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
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