धीरे-धीरे रुनझुन पूरे छ: महीने की हो गयी... अब तक तो वो बस दूध ही पीती थी लेकिन अब समय आ गया था जब बड़ों जैसा तरह-तरह का स्वादिष्ट खाना वो भी खा सके... और इसीलिए बेटी का अन्नप्राशन संस्कार करने का निश्चय किया गया... शुभ दिन, शुभ मुहूर्त देखकर दादू ने तिथि निश्चित की... प्रतिमा मौसी ने खुद अपने हाथों से निमंत्रण पत्र बनाया जिसमें बिटिया की फोटो भी थी... और निमंत्रण... वो तो खुद बिटिया की ही ओर से था... आप सब तो उस समय बेटी की खुशियों में शामिल नहीं हो पाए थे इसलिए चलिए आज हम वो सारी बातें आप से शेयर करते हैं ताकि आप भी जुड़ सकें बेटी की खुशियों से...
ये है वो निमंत्रण पत्र... सुन्दर है न! अन्नप्राशन का दिन निश्चित हुआ 17 मई 2002 का... फिर क्या था... एक बार फिर बेटी की छुकछुक गाड़ी चल पड़ी रांची.. दादा-दादी के पास जहाँ उसे बहुत मज़ा आने वाला था... और छुकछुक गाड़ी का सफ़र तो रुनझुन को पसंद है ही...
और ये रहा निमंत्रण... इसे पूरा पढ़ियेगा ज़रूर!
ताई जी और मम्मी के साथ खिलखिलाती रुनझुन |
17 मई को सुबह-सुबह ताई जी ने सबसे पहले तुलसी माँ को प्रणाम करवाया...
अरे ! ज़रा संभलकर ! फूलों से भी नाज़ुक है लाडो |
अरे देखो मैं तो बिलकुल टकलू हो गयी ही-ही-ही |
नहीं हल्दी लगाना मुझे अच्छा नहीं लग रहा! |
उसके बाद एक और मज़ेदार रस्म हुई... सारी दीदियों को रुनझुन का पैर दबाना था... ऐसा क्यों हुआ ये तो रुनझुन को नहीं पता लेकिन जब दीदी पैर दबा रही थी तब उसे बहुत शर्म आयी...दीदी लोगों को भी नन्हीं सी गुड़िया के नाज़ुक कोमल-कोमल पैरों को दबाते हुए बहुत हंसी आ रही थी...
अरे-अरे!.. दीदी!! ये क्या कर रही हैं!!! |
दादी के साथ रुनझुन |
रानी दीदी छोटी बहना के साथ |
मम्मी की नन्ही परी |
प्रिय रुनझुन इतनी ख़ुशी मस्ती देख तो मेरा भी मन करने लगा की मुंडन करा ही लूं काशी जा के बच्चा बन जाऊं लेकिन हमें तो मिठाई देने की जगह पकड के बाबा जी बना देंगे -
ReplyDeleteसुन्दर छवियाँ आंनंद दायी
आभार
शुक्ल भ्रमर५