नमस्कार!
जैसे स्कूल में मेरे सारे सब्जेक्ट्स के लिए अलग-अलग टीचर्स हैं वैसे ही यहाँ ब्लॉग पर भी मेरे एक बड़े ही अच्छे पोएट्री टीचर बन गए हैं रविकर अंकल.... अंकल कई बार मुझे मैसेज में Fill in the blanks form में कुछ शब्द देते हैं और मैं उनकी सहायता से कविता बनाने की कोशिश करती हूँ.... मैंने अंकल को अपनी ये टेढ़ी-मेढ़ी सी लिखी हुई कविता "प्रेम की भाषा" दिखाई तो रविकर अंकल ने चुटकियों में इसे एकदम राइमिंग बना दिया और अब ये एक बड़ी ही अच्छी सी कविता बन गयी है... देखिये आप भी उस कविता के इस नए रूप को देखिये....
प्रेम की भाषा
यूँ ही बैठे देख रही थी,
उस खिड़की के बाहर |
मेरी जैसी चंचल चपला,
एक गिलहरी नीम पेड़ पर |
कभी उछलती, कभी कूदती,
वह चढ़ जाती पेड़ों पर ||
चाहूँ अपना दोस्त बनाना,
गई भाग पर मुझसे डरकर |
मेरी भाषा नहीं समझती,
दूर से देखे घूर-घूर कर |
इतने में ही मेरी मम्मी,
देखी मुझको खिड़की पर |
समझ गई वह बिना बताये,
जान छिड़कती जो मुझपर |
प्यार की भाषा अच्छी भाषा,
समझे इसको थलचर-नभचर ||
प्यार से उसको पुचकारो तो
आ जायेगी उछल-उछल कर |
काम आ गई माँ की वाणी,
खेल रही मेरी गोदी पर |
गोदी में ही सो जाती है,
हाथ फेरती जैसे उसपर ||
थैंक्यू रविकर अंकल! मेरी कविता को और अच्छी बनाने के लिए..... दोस्तों आपको पता है कि आप सब मेरी हर पोस्ट में सहायता करते हैं....पता है कैसे? ...अपने कमेंट्स के द्वारा....है ना?.... इसलिए thanks to all of you!!!
रविकर जी अपने आप मे बहुत खास हैं।
ReplyDeleteतुम उन से सीख रही हो यह जानकर बहुत अच्छा लगा डियर।
Bahut sundar .... aaise hi likhati raho subhashish !
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