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ये पूरा संस्मरण मैंने अपनी डायरी में लिख रखा है और उसमें ये ड्राइंग भी मैंने बनाई है..... |
नंदन पहाड़ घूमने के बाद तो मुझे बस वही याद आता था.... और मैं मम्मी-पापा से वापस नंदन पहाड़ जाने की ज़िद करती रहती थी... भगवान ने मेरी सुन ली, और जल्दी ही मैं एक बार फिर पहाड़ों का मज़ा ले पाई थी... आपको पता है कैसे?...... नहीं?.... अच्छा ठीक है.... चलिए मैं आपको अपनी इस यात्रा के लिए ले चलती हूँ... और हाँ! यात्रा के दौरान बहुत ठंड लगेगी आखिर हम हिल स्टेशन जाने वाले हैं ना.... इसलिए खूब सारे गर्म कपड़े अपने साथ ज़रूर रख लीजियेगा...
नवंबर 2007 में जब मैं अपने मामा की शादी के लिए कानपुर गयी, तब शादी के बाद सबने मेरी नई मामी के साथ वैष्णों देवी जाने की योजना बनाई... और ये सुनकर कि मैं दोबारा पहाड़ देख सकूंगी, मैं बहुत खुश हो गई... जल्दी-जल्दी हम सबने गर्म कपड़े, स्लीपिंग बैग, खाने का सामान वगैरह रख कर तयारी की और यात्रा पर निकल पड़े... जब सारे लोग स्टेशन पर सामान वगैरह रख कर एक साथ खड़े हुए तो मैं तो हैरान रह गई....बाप रे!!!!!!.... इतने सारे लोग!!!!!...... पता है ट्रेन की लगभग आधी बोगी तो हमारी ही थी...:) और होती भी कैसे ना?... इतने सारे लोग जो गए थे.... हब सब छोटे-बड़े कुल मिलाकर पूरे सत्ताईस लोग थे... हमने ट्रेन में भी बहुत मस्ती की थी.... पता है, जब कभी अन्त्याक्षरी खेलते तब वो पूरी बोगी कोई स्टूडियो जैसी लगने लगती, और जब हम हाईड & सीक खेलते तो समझ में ही नहीं आता कि कौन कहाँ और किसके पास छुप गया है?... और जब रात हो गई तब हम सब अपने-अपने स्लीपिंग बैग्स में घुस कर आराम से सो गए.....
सुबह-सुबह हम सब जम्मू स्टेशन पहुँच गए....
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ये रहा हमारा काफ़िला, ये भी पूरे नहीं हैं दो-चार कम ही हैं...) |
और फिर वहाँ से बस में निकल पड़े माँ के दर्शन के पहले पड़ाव यानि "कटरा" के लिए... बीच में हम एक जगह कहीं रुके मुझे लगा हम पहुँच गए... लेकिन नहीं ये तो बस एक छोटा सा पड़ाव था... अभी तो सफ़र बहुत लंबा था....
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जम्मू से कटरा के रस्ते में एक छोटा सा पड़ाव... मेरे साथ
स्वाति और संगीता मौसी, पूनम दीदी, आयुष मामा,
पंकज मामा, शालिनी(नई) मामी और मम्मी |
कटरा पहुंच कर सबसे पहले हम त्रिकुटा भवन पहुंचे और वहाँ पर फ़्रेश होकर वॉक के लिए बाहर आ गए...
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वो देखिये हमारे पीछे है "त्रिकुटा भवन" |
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त्रिकुटा भवन से कटरा के एक चौराहे का दृश्य |
वहाँ एक स्टूडियो में हमने कश्मीरी ड्रेस में फ़ोटो भी खिचवाये... आइये आपको भी दिखाऊँ...
ये है काश्मीरी "रुनझुन"
और ये है रुनझुन का काश्मीरी भाई "शाश्वत"
कुछ देर बाद हम त्रिकुटा भवन में वापस लौट आए... रात का खाना खाने के बात एक बार हम फिर तैयार थे आगे की यात्रा के लिए...
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हम सब तैयार हैं !!! |
थोड़ी ही देर में एक बस आई और हम सब उसमे सवार हो गए|... मम्मी ने बताया कि ये बस हमें उस जगह ले जाएगी जहाँ से हमें चलना शुरू करना है... मतलब Starting point... बस से उतरते ही मम्मी ने मुझे बताया- '' बेटा,वो जो दूऊऊऊऊऊऊर बहुत ऊंचाई पर रौशनी दिखाई दे रही है ना, वहीं हमें जाना है''... बाप रे! हमें इतना चलना होगा? मैं तो सिर्फ़ अभी छोटी सी बच्ची हूँ, इतना कैसे चल पाऊँगी?... पर जिन लोगों को घूमने की सुध लगी रहेगी उन्हें तो कुछ भी चलेगा...है ना?...
और अब शुरू हुई हमारी असली यात्रा.... पैदल-पैदल... पांवों में जूते और हाथों में सहारे के लिए लाठियाँ लेकर, मन में माँ के दर्शन की आस लिए "जय माता दी" के जयकारे के साथ हम बढ़ चले अपनी रोमांचक यात्रा पर.... रास्ते में जब-जब हम थक जाते तो कहीं रूककर थोड़ा आराम करते तब मम्मी मेरे थके पैरों को दबाकर मेरा हौसला बढ़ाती... पता है उस पूरे बड़े से ग्रुप में पैदल जाने वाली मैं सबसे छोटी यात्री थी (just 6 years old)... मुझसे छोटे सारे बच्चे या तो पिट्ठू पर थे या फिर baby bag में...
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सचमुच बहुत थक गयी थी मैं....:( |
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ऊपर चढ़ते समय नीचे शहर का खूबसूरत नज़ारा |
अगली सुबह हम अर्ध-कुमारी पहुँच गए... जयकारे तेज़ हो गए और लंबी लाइन में लगकर खिसकते हुए हम गुफा के द्वार पर पहुंचे... इतना पतला..छोटा..संकरा रास्ता... मैं तो देखकर ही घबरा गई... इसमें मैं कैसे घुस सकती हूँ... लेकिन फिर मैंने देखा सभी बड़े लोग लेटकर उसमें घुस रहे हैं... मम्मी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे लिटाकर आगे की ओर खिसका दिया.. आगे पापा थे पीछे मम्मी और बीच में मैं... मुझे सचमुच नहीं पता मैं रेंगकर कैसे वहाँ से बाहर निकली... लेकिन हाँ, बाहर आने बाद बहुत मज़ा आया... मुझे लगा मैं एक बार फिर से उस गुफा में जाऊं.... लेकिन इसके लिए फिर से लंबी लाइन लगानी पड़ती... इसलिए मुझे अपना इरादा बदलना पड़ा और हम आगे की यात्रा पर निकल पड़े... अब सुबह हो चुकी थी और ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के दृश्य बहुत ही सुन्दर लग रहे थे... हम मस्ती में नाचते, झूमते-गाते... जयकारा लगाते आगे बढ़ने लगे...
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वो देखिये पापा के पीछे मैं भी हूँ.... |
अँधेरा होने के पहले हम भवन पहुँच गए... उफ़! हम सब थक कर बुरी तरह चूर हो चुके थे और ऊपर से कड़ाके की ठंड... बहुत बुरा हाल था हम सबका ... खाना खाकर जब हम होटल में सोने गए तो फिर कुछ होश नहीं था... सुबह जब मम्मी ने जगाया तो मुझे तो पहले कुछ समझ में ही नहीं आया कि मैं कहाँ हूँ... खैर थोड़ी देर बाद हम सब नहा-धो के फिर से तैयार हो गए ...
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बस अब थोड़ी ही देर में ये कारवा माता के दरबार में पहुँचने वाला है |
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मैं भी तैयार हूँ !!! |
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बिलकुल चुस्त-दुरुस्त !!! |
और हमारा कारवां चल पड़ा पवित्र गुफा के दर्शन के लिए...
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माँ का दरबार
जयकारा शेरावाली का... बोल सांचे दरबार की जय!!! |
मुझे तो माता जी का जयकारा लगाने में बहुत मज़ा आ रहा था... मुझे लगा यहाँ भी गुफा में रेंगकर जाना होगा... लेकिन नहीं यहाँ तो गुफा के दो द्वार बने थे एक अंदर जाने के लिए और एक बाहर आने के लिए... हम सब अंदर गए माता की पिंडियों का दर्शन किया और बाहर निकल गए.... वहाँ गुफा में थोड़ा-थोड़ा पानी भी था... बाहर आकर मुझे बहुत अच्छा लगा... आखिर इतनी दूर से इतना पैदल चल कर हम जिस लिए आए थे वो पूरा हो गया..... मुझे लगा अब बस अब हम लोग वापस नीचे चलेंगे.... पर तभी पता चला कि नहीं अभी हमें और चढाई करनी है क्योंकि हम सब अब भैरों नाथ जायेंगे... मुझे तो लगा अब मैं और नहीं चढ़ पाऊँगी लेकिन जब सब लोग ढोल मजीरे के साथ नाचते-गाते आगे बढ़े तो पता नहीं मैं भी कैसे सबके साथ चलने लगी... और कुछ देर की यात्रा के बाद हम भैरों नाथ पहुँच गए...
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भैरों मंदिर |
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मम्मी, नानी, रचित और मैं |
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भैरो मंदिर में |
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मैं, मम्मी, पापा और भाई |
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हम हैं तैयार!!!... अभी बहुत दूर जाना है.... |
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मैं... पापा, प्रशांत मामा, राजन मामा, सोनू मामा, रचित और भाई के साथ |
बाप रे!.... वहाँ इतने सारे लंगूर और बन्दर थे कि पूछिए मत... लेकिन वो सब बहुत ही अच्छे थे वे किसी को काट नहीं रहे थे बल्कि कुछ बड़े लोग तो उन्हें अपने हाथों से मूंगफली खिला रहे थे... लेकिन बाबा मुझे तो डर लग रहा था मैं तो उनके पास भी नहीं गयी... और फिर वहाँ दर्शन करने के बाद हमने नीचे उतरना शुरू किया... रास्ते में हम हाथी-मत्था और सांझी-छत पे भी रुके वहाँ से हमने हेली पैड भी देखा.
वो देखिये हमारे पीछे सांझी-छत का हेलीपैड दिख रहा है न!!!
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मैं हिमालय की गोद में !!! |
इस यात्रा की कुछ और इंटरेस्टिंग यादे आप से शेयर करूँगी... पर आज नहीं कल... आज तो मैं बहुत थक गयी हूँ और इतना पढ़ते-पढ़ते आप भी थक चुके होंगे.... तो फिर मिलते हैं... रेस्ट के बाद.... आई मीन ब्रेक के बाद.....:))
BADHIYA GHUMAKKADI
ReplyDeleteJAY MATA DI
Excellent Reporting...लग रहा है जैसे अभी-अभी मैं भी माता-धाम के दर्शन करके लौट आई हूँ.
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