Saturday, July 16, 2011

मेरे प्यारे धीरज मामा

रुनझुन धीरज मामा के साथ  
रुनझुन का ब्लॉग हो और धीरज मामा की उसपर चर्चा न हो ये कैसे हो सकता है! क्योंकि रुनझुन की बातें रुनझुन के धीरज मामा के बिना तो बिलकुल अधूरी सी हैं... "धीरज मामा"... जो रुनझुन के मामा ही नहीं बहुत अच्छे दोस्त भी हैं... जब रुनझुन बोल भी नहीं पाती थी... तब से वो मामा के साथ अपनी बातें और फीलिंग्स शेयर करती आ रही है... धीरज मामा रुनझुन के एकदम पक्के फ्रेंड हैं सच्ची!!!... जब रुनझुन एकदम नन्ही सी थी... चलना भी नहीं जानती थी... और बस लेटी या सोई रहती थी तब भी धीरज मामा बेटी के पास बैठकर उसके चेहरे पर आने वाले भावों को पढ़ने की कोशिश करते हुए उससे ढेरों बातें करते थे...इतना ही नहीं जब बेटी मुज़फ्फ़रपुर चली गयी तो धीरज मामा सिर्फ़ अपनी रुनझुन बेटी से मिलने के लिए छुकछुक गाड़ी में बैठकर उसके पास आ जाते और उससे ढेरों बातें करते... बेटी कब क्या सोच रही है, कब क्या महसूस कर रही है, कब क्या कहना चाह रही है सब कुछ धीरज मामा बहुत अच्छे से समझते... अपने नाम के अनुरूप ही धीरज मामा बड़े ही धीरज के साथ बिटिया की हर बात सुनते और बदले में बिटिया भी मामा का पूरा मान रखती... नन्ही सी बिटिया को मामा कभी हरिवंश राय बच्चन तो कभी गोपालदास नीरज तो कभी किसी और कवि की रचनाएँ सुनाते... बेटी भाव-विभोर होकर न सिर्फ कविताये सुनती बल्कि उनपर अपनी टिप्पणियाँ भी देतीं... बेटी और धीरज मामा की ये अनूठी दोस्ती अच्छे अच्छों को दाँतों तले उँगली दबाने पर मजबूर कर देती है....
बेटी और मामा के इस अनोखे रिश्ते को आप भी देखिये...
ही-ही-ही मामा ने कित्ती मज़ेदार कविता सुनाई !
  रुनझुन को मामा ने कौन सी कविता सुनाई कि वो खिलखिला पड़ी ये तो आप भी जानना चाहेंगे न! तो लीजिये आप भी सुनिए...अ-अ...मेरा मतलब है पढ़िए...
लाल टमाटर हरे मटर ने मंडी चलने की ठानी |
आलू भी तैयार हो गया साथ चली गोभी रानी ||

कित्ती प्यारी कविता सुनाई ना!...मेरे अच्चेssss मामा !!!
जितने ध्यान से रुनझुन मामा की बातें सुनती उतने ही धैर्य के साथ मामा भी रुनझुन की बातें सुनते...
श्श्श्श.....बेटी की बातें बहुत ध्यान से सुननी पड़ती हैं!
ऐसा नहीं कि मामा के पास ही रुनझुन को बताने या दिखाने के लिए कुछ रहता बल्कि रुनझुन के पास भी हमेशा ढेरों बातें, ढेरों चीजें होती मामा से शेयर करने के लिए... जैसे रुनझुन के घर के पास ही रेलवे लाईन थी जिस पर से दिनभर में कई रेलगाड़ियाँ गुज़रतीं और हर बार मामा दौड़ कर रुनझुन को छुकछुक गाड़ी दिखाते...
अरे वाह! देखो कित्तीssss लम्बी ट्रेन!!!
 और रात में वहीं से रुनझुन धीरज मामा को उँगली से एक बड़ाsss सा गोल घेरा बनाते हुए "गोल-गोल-गोल चन्दा मामा" दिखाती...
वोssss देखिये गोssल....गोssल.....गोssssल चंदा मामा!!! 
 और मामा के साथ लुका-छिपी खेलने में तो रुनझुन का जवाब ही नहीं...पहचानिए तो परदे के पीछे कौन है....
अरे नहीं पहचाना क्या?
ये मैं हूँ रुनझुन!!!
घर में तो मस्ती होती ही रहती है पर मामा के साथ बाहर भी तो घूमने जाना है... अभी मामा को वैशाली भी तो दिखाना है न! तो फिर चलिए...
इधर नहीं उधर!!!
धीरज मामा, राजन मामा और प्रतिमा मौसी के साथ शांति -स्तूप के पास 
ओफ्फोह! कितनी तेज़ धूप है!!!...कोई बात नहीं मौसी की चुन्नी है ना!
मेरा फेवरेट लम्म्म्बा वाला अशोक स्तम्भ भी तो मामा को दिखाना था न!
रुनझुन और धीरज मामा की इस अनोखी दोस्ती की लम्बी दास्तान हम यूँ ही समय-समय पर आपको बताते रहेंगे लेकिन फ़िलहाल तो इतना ही....      

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