Friday, April 27, 2012

बाल साहित्यकार डा.श्रीप्रसाद नानाजी से एक मुलाक़ात...


हेलो फ्रेंड्स ! 

मेरी गर्मी की छुट्टियाँ बस कुछ ही दिनों में शुरू होने वाली हैं... मैं तो बहुत excited हूँ... गर्मी की छुट्टियाँ मतलब रुटीन से एकदम अलग हटकर... लगभग एक महीने तक बिलकुल अलग दिनचर्या... बिलकुल अलग तरह की मस्ती... मैं तो मार्च का महीना आते ही गर्मी की छुट्टियों का इंतज़ार शुरू कर देती हूँ... अ-अ-अ-अ लेकिन इस साल की छुट्टियाँ तो अभी हुई नहीं... कोई बात नहीं चलिए आपको पिछले साल की गर्मी की छुट्टियों के बारे में बताती हूँ... 

हमेशा की तरह पिछली बार भी गर्मी की छुट्टियों में मैं अपनी नानी के घर बनारस गई थी और मेरी छुट्टियों का ज़्यादातर समय तरह-तरह की किताबें पढ़ने, ड्राइंग करने या फिर अपनी छोटी बहना (मेरे मामा की बेटी) के साथ खेलने में बिताती थी... मम्मी ने मेरे लिए ढेर सारी बुक्स खरीदी थीं... उन्ही बुक्स में से एक कहानियों का संकलन था--"दादी का पंचतंत्र" और इन कहानियों के लेखक हैं- डा0 श्रीप्रसाद... इनकी कविता "हल्लम-हल्लम हौदा हाथी" मैं बचपन में बड़े चाव से सुना करती थी... एक दिन जब मैं ये किताब पढ़ रही थी, तभी प्रतिमा मौसी ने मुझे बताया कि अगर मैं चाहूँ तो मैं श्रीप्रसाद नाना जी से मिल सकती हूँ... ये बात पता चलते ही मैं तो खुशी से झूम उठी... अगले दिन हम श्रीप्रसाद नाना जी के घर गए... उन्हें देखकर तो मैं आश्चर्य में पड़ गई कि नाना जी इतने बड़े होने के बाद भी हम बच्चों के लिए कविताएँ और कहानियाँ कैसे लिख लेते हैं क्योंकि वो सब कविताएँ और कहानियाँ तो बिलकुल हम बच्चों जैसी ही होती हैं.... और आपको पता है... नाना जी ने हमें अपनी प्रकाशित कई पुस्तकें दिखाईं उन सभी की कविताएँ और कहानियाँ बहुत ही अच्छी थीं... बिलकुल हम बच्चों के लिए... नाना जी ने हमें अपनी मिनी लाइब्रेरी भी दिखाई... उनके लिखने का स्थान जहाँ बैठकर वो इतना सुन्दर बाल साहित्य लिखते हैं वो जगह भी हमें दिखाई... वो भी हमसे मिलकर बहुत खुश हुए... उन्होंने मुझसे खूब सारी बातें की... और उन्होंने अपनी कई कविताएँ खुद गाकर मुझे सुनाईं... सबसे पहले उन्होंने मेरी फेवरेट कविता सुनाई.... कौन सी ????.... आप खुद ही देख लीजिए....


हल्लम-हल्लम हौदा, हाथी चल्लम-चल्लम|
हम बैठे हाथी पर, हाथी हल्लम-हल्लम||

लंबी-लंबी सूँड, फटाफट फट्टर-फट्टर|
लंबे-लंबे दाँत, खटाखट खट्टर-खट्टर||

भारी-भारी मूँड, मटकता झम्मम-झम्मम| 

हल्लम-हल्लम हौदा, हाथी चल्लम-चल्लम||

पर्वत जैसी देह, थुलथुली थल्लल-थल्लल|
हालर-हालर देह हिले जब हाथी चल्लल||

खम्भे जैसे पाँव धपाधप, पड़ते धम्मम|
हल्लम-हल्लम हौदा, हाथी चल्लम-चल्लम||


हाथी जैसी नहीं सवारी अग्गड़-बग्गड़|
पीलवान पुच्छ्न बैठा है बाँधे पग्गड़||

बैठे बच्चे बीस, सभी हम डग्गम-डग्गम|
हल्लम-हल्लम हौदा, हाथी चल्लम-चल्लम||


दिन भर घूमेंगे हाथी पर, हल्लर-हल्लर|
हाथी दादा ज़रा नाच दो थल्लर-थल्लर||

अरे नहीं हम गिर जायेंगे, घम्मम-घम्मम|
हल्लम-हल्लम हौदा, हाथी चल्लम-चल्लम||

---डा0 श्रीप्रसाद  

वैसे तो ये कविता मैंने बचपन से ही बहुत बार धीरज मामा के मुँह से सुनी है और मुझे थोड़ी-थोड़ी याद भी है लेकिन श्री प्रसाद नानाजी के मुँह से सुनने में और भी ज़्यादा मज़ा आया... इसके अलावा उन्होंने और भी कई कविताएँ सुनाईं... इतना ही नहीं किस घटना से प्रेरित होकर कौन सी कविता बनी या फिर कौन सी कविता उनके बचपन के किसी संस्मरण से जुड़ी है... ऐसी बहुत सी बातें... कविताओं और कहानियों के पीछे की ढेर सारी कहानियाँ भी उन्होंने हमें सुनाईं... उनसे ये सारी बातें करना बहुत ही रोचक लग रहा था... मैं तो उनकी बातों में खो गयी थी... मन कर रहा था बस यूँ ही ढेर सारी बातें करती जाऊँ लेकिन उनकी तबीयत कुछ ठीक नहीं थी और डॉक्टर ने उन्हें ज़्यादा बोलने के लिए मना किया था... नानी जी (उनकी पत्नी) बीच-बीच में उनको याद दिलाती और थोड़ा आराम करने को कह रही थी... अब-तक धीरे-धीरे रात होने लगी थी और हमें वापस भी जाना था... चलने से पहले मैंने नानाजी को एक पेन गिफ़्ट की जो मैं स्पेशियली उनके लिए ले गयी थी... वो बहुत खुश हुए... उन्होंने मुझे खूब सारा आशीर्वाद दिया और कहा कि-- "अगली बार जब बनारस आना तो अपनी लिखी चीज़े भी साथ ले आना और मुझे दिखाना", मैं इस बार भी जब वहाँ जाऊंगी तो उनसे ज़रूर मिलूँगी... लेकिन हाँ इस बार वहाँ जाने पर बहुत दुःख भी होगा क्योंकि इस बीच नानी जी (उनकी पत्नी) गुज़र गयीं... घर में उनकी कमी बहुत खलेगी... पिछली बार वो भी पूरे समय हम लोगों के साथ थीं और हमारी हर बात-चीत में पूरी तरह से शामिल थीं... इतना ही नहीं लाख मना करने पर भी उन्होंने बड़े प्यार से हमें नाश्ता कराया था... ये सब याद करके मुझे बहुत दुःख भी होता है और सोचती हूँ कि जब सिर्फ़ एक बार मिलकर ही मुझे इस समाचार से इतना दुःख हो रहा है तो नानाजी को कैसा लग रहा होगा... वो तो कितने सालों से उनके साथ ही थीं...  आज उनकी बातें करते हुए, उन्हें याद कर, मुझे बहुत खराब लग रहा है... इसलिए अब चलती हूँ... बाद में फिर मिलूँगी मूड ठीक होने के बाद... तब-तक आप देखिये ये कुछ फोटोग्राफ्स उस मुलाकात की.....

डा. श्रीप्रसाद नानाजी और मैं !!!
   
 अद्भुत गौरव के पल !!!


 नानाजी, नानीजी और मम्मी के साथ


प्रतिमा मौसी और नानाजी के साथ खुशी के पल

नानाजी की मज़ेदार कविताओं का रसास्वादन


ये देखिये, बच्चों की कविताएँ पढ़ते हुए बच्चों जैसे ही मगन नानाजी


नानाजी की बातों में खोई मैं


नानाजी के साथ सलीम मामा और मैं


नानाजी से मिलकर, उनसे प्यारी-प्यारी बातें करके अभिभूत मैं









Sunday, April 22, 2012

आज है पृथ्वी दिवस



हाँ, आज पृथ्वी दिवस (Earth Day) है... और हर जगह आज इसकी चर्चा भी है... किसी भी स्पेशल दिन पर हम उससे सम्बंधित बातें तो बहुत ढेर सारी करतें हैं लेकिन फिर अगले ही दिन हम सब-कुछ भूल जाते हैं... तभी तो हमारी पृथ्वी दिनों-दिन अपना सौंदर्य खोती जा रही है... लेकिन अब ऐसा नहीं होगा क्योंकि अब तो हम बच्चे भी जागरूक हो रहे हैं... अब हमें भी पता है कि हमारी पृथ्वी को हरा-भरा स्वस्थ और सुन्दर बनाये रखने के लिए हमें पर्यावरण-प्रदूषण को रोकना है, पानी के दुरुपयोग को रोकना है, पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों की रक्षा करनी है... हम इसके लिए पूरा प्रयास करेंगे और वो दिन दूर नहीं जब हमारी छोटी-छोटी कोशिशें रंग लायेंगी और हमारी ये ख़ूबसूरत धरती और भी निखर उठेगी...  


To save our Mother Land, 
I also lend my hand... 


पेड़ लगाओ, वृक्ष उगाओ |
धरती माँ को स्वस्थ बनाओ ||


तो आज के इस स्पेशल दिन चलिए मैं आपको एक ऐसी दुनिया में ले चलती हूँ... जो मुझे उतनी ही पसंद है जितनी अपनी पृथ्वी... और ये है मेरे रंगों की इन्द्रधनुषी दुनिया... इस दुनिया में आपको चारों तरफ सुन्दर, चमकीले ढेर सारे रंग ही रंग दिखाई देंगे... बिलकुल वैसे ही जैसे हमारी सुन्दर धरती पर चारों तरफ सुन्दर-सुन्दर रंग बिखरे हैं...... मैं एक एक करके इन सारे रंगों से आपको मिलवाऊँगी.... लेकिन सबसे पहले आइये आपको दिखाती हूँ वो रंग जिसने मुझे मेरी लाइफ का पहला पुरस्कार दिलाकर मुझे बहुत बड़ी खुशी दी थी... और सबसे बड़ी बात ये है कि ये भी हमारी धरती से ही रिलेटेड है... लेकिन रुकिए....मुझे उससे पहले आपको और कुछ भी बताना है....


ये तब की बात है जब मैं यू.के.जी. की वार्षिक परीक्षाएँ देकर खाली ही हुई थी एक दिन मैंने पेपर में एक advertisement देखा... "बिहार राज्य पर्यावरण प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड" की ओर से "On spot drawing competition" होने वाला था। मैंने मम्मी-पापा को वो ऐड दिखाया और मेरा नाम मम्मी-पापा ने रजिस्टर करवा दिया....टॉपिक था- रंग बिरंगे फूल, पहाड़, और तितलियाँ आदि....बस फिर किस बात कि देर थी?...शुरू हो गयी मेरी फर्स्ट ड्राइंग कम्पटीशन की तैयारी... आखिरकार कम्पटीशन का दिन आ गया...और मैं पेपर में लिखे पते पर पापा के साथ चल पड़ी....बाप रे!!! वहाँ तो इतने सारे लोग थे.... मैं इतने सारे लोगों का मुकाबला कैसे कर पाउंगी?.....
लेकिन मन में अगर हम कुछ करने की ठान लें तो हमें कोई नहीं रोक सकता..है ना फ्रेंड्स?


सबसे पहले हम जिस जगह पर गए वह एक बड़ा-सा मैदान था और हमें उसी मैदान में बैठकर ही ड्राइंग बनानी थी... हमें एक-एक बड़ी सी ड्राइंग शीट दे दी गई... मैंने अभी अपनी ड्राइंग बनानी शुरू ही की थी कि तभी बारिश शुरू हो गई!!!... इन्द्र भगवान की वर्षा से हम बच्चों की सारी Drawings खराब हो गयीं थीं पर इंद्र भगवान ने अगर गड़बड़ की थी तो उन्होंने ही सब ठीक भी कर दिया और हमारे कम्पटीशन को पोस्टपोन  नहीं होने दिया... वहाँ से हम सब ''बिहार राज्य पर्यावरण प्रदूषण कण्ट्रोल बोर्ड'' के ऑफिस में गए और वहाँ पर अपनी Drawings को कन्टीन्यू किया...

फिर शुरू हो गई मेरी गर्मी की छुट्टियाँ.....मैं मम्मी और भाई के साथ अपने नानी के घर बनारस चल दी..और पापा पटना में ही थे... कुछ ही दिनों बाद उन्हें एक फ़ोन कॉल आया कि आपकी बेटी, प्रांजलि दीप ''बिहार राज्य पर्यावरण प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड'' कम्पटीशन में सेकेंड आई है!!!! पापा ने फ़ोन करके मुझे बताया... मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं इतनी अच्छी ड्राइंग करती हूँ!!!... मैं बहुत-बहुत खुश हुई... 


ये रही मेरी सेकेण्ड प्राइज़ विनिंग ड्राइंग और विजेता कप.....


Second Prize
Save Trees... Save Environment


और अगले वर्ष फिर "बिहार राज्य पर्यावरण प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड" के द्वारा ये प्रतियोगिता आयोजित की गयी... इस बार मेरी कैटिगरी के लिए विषय था... "हमारी पृथ्वी"  मुझे लगा कि सिर्फ़ हरी-भरी और पानी वाली पृथ्वी तो सभी बनायेंगे लेकिन मुझे भविष्य की पृथ्वी से सबका परिचय करवाना चाहिये... दोस्तों! आप सब तो ये जानते ही होंगे कि यदि हम पृथ्वी के गहनों यानी वृक्षों को काटते हैं तो हम हमारी पृथ्वी को भी हानि पहुंचाते हैं... तो मैंने भी अपनी ड्राइंग के द्वारा यही विचार व्यक्त करने की कोशिश की... आप सब भी देखिये....


Save trees... Save our Mother Land


तो मित्रों, आप समझ गए न कि यदि हम पेड़ों को काटेंगे तो धरती एक दिन यूँ ही टूट कर बिखर जायेगी... और मेरा यह सन्देश शायद निर्णायक मंडल ने समझ लिया...  तभी तो मुझे इस बार प्रथम पुरस्कार मिला... 


First Prize !!!


इन पुरस्कारों की वजह से मेरा नाम पटना के कई अखबारों में भी प्रकाशित हुआ.....





































तो मित्रों अब पृथ्वी के भविष्य को बदलने के लिए हम सभी को हाथ बंटाना होगा, हमारी धरती को हरा-भरा बनाकर.... तो चलिए हम सब आज संकल्प लें कि हम अपनी प्यारी धरती को नष्ट नहीं होने देंगे और धरती के भविष्य को बदल कर दिखायेंगे... !!! 

Happy World Earth Day to all my Friends !!!!  



Friday, April 20, 2012

मेरा प्यारा ब्लॉग...


हैप्पी बर्थडे टू यू......
हैप्पी बर्थडे टू यू......


अरे! ये किसका बर्थडे है.....?...........


क्या हुआ फ्रेंड्स ?..... 


कन्फ्यूज़ हो गए न !.... कि आज किसका बर्थडे है ?.....


सोचिये.....सोचिये.........


ह्म्म्म्म्.... नहीं बता पाए ना?... अरे भई, आज है.... मेरे प्यारे ब्लॉग का बर्थडे!!!..... आज से ठीक एक साल पहले मेरे ब्लॉग की शुरुआत हुई थी... और आज मेरा ब्लॉग पूरे एक साल का हो गया.... 20 अप्रैल 2011 को इस ब्लॉग की पहली पोस्ट पब्लिश हुई थी... तब वो पोस्ट मेरी माँ ने लिखी थी और आज एक वर्ष बाद 20 अप्रैल 2012 को मैं खुद आप सबसे बातें कर रही हूँ... सच मुझे बहुत ही खुशी हो रही है... आज का दिन मेरे लिए बहुत स्पेशल है क्योंकि..... आज मेरे ब्लॉग यानि उस मंच का जन्मदिन है जिसके माध्यम से मैं अपनी ढेर सारी बातें आप सबसे न सिर्फ़ शेयर कर सकती हूँ... बल्कि जिसके माध्यम से मुझे बहुत कुछ नया जानने और सीखने को भी मिलता है.... 


तो आज अपने इस प्यारे ब्लॉग के लिए मैं कुछ कहना चाहती हूँ.....


              एक साल का हो गया 
              मेरा प्यारा ब्लॉग 
             खुशी मनाओ, जश्न मनाओ
             सारे मिलकर नाचो-गाओ
             था मंगलमय सफ़र हमारा
             अब तक का
             आगे भी ये सुखद रहेगा, 
             कहना है मेरे मन का 
             तो फिर.....
             खुशी मनाओ, जश्न मनाओ
             सारे मिलकर नाचो-गाओ
             क्योंकि......
             एक साल का हो गया 
             मेरा प्यारा ब्लॉग !!!









Monday, April 16, 2012

My on line poetry Teacher....


नमस्कार!
      जैसे स्कूल में मेरे सारे सब्जेक्ट्स के लिए अलग-अलग टीचर्स हैं वैसे ही यहाँ ब्लॉग पर भी मेरे एक बड़े ही अच्छे पोएट्री टीचर बन गए हैं रविकर अंकल.... अंकल कई बार मुझे मैसेज में Fill in the blanks form में कुछ शब्द देते हैं और मैं उनकी सहायता से कविता बनाने की कोशिश करती हूँ.... मैंने अंकल को अपनी ये टेढ़ी-मेढ़ी सी लिखी हुई कविता "प्रेम की भाषा" दिखाई तो रविकर अंकल ने चुटकियों में इसे एकदम राइमिंग बना दिया और अब ये एक बड़ी ही अच्छी सी कविता बन गयी है... देखिये आप भी उस कविता के इस नए रूप को देखिये....

प्रेम की भाषा
यूँ ही बैठे देख रही थी, 
उस खिड़की के बाहर |

मेरी जैसी चंचल चपला,
एक गिलहरी नीम पेड़ पर |

कभी उछलती, कभी कूदती, 
वह चढ़ जाती पेड़ों पर ||

चाहूँ अपना दोस्त बनाना,
गई भाग पर मुझसे डरकर |

मेरी भाषा नहीं समझती,
दूर से देखे घूर-घूर कर |

इतने में ही मेरी मम्मी, 
देखी मुझको खिड़की पर |

समझ गई वह बिना बताये,
जान छिड़कती जो मुझपर |

प्यार की भाषा अच्छी भाषा,
समझे इसको थलचर-नभचर ||

प्यार से उसको पुचकारो तो
आ जायेगी उछल-उछल कर |

काम आ गई माँ की वाणी,
खेल रही मेरी गोदी पर |

गोदी में ही सो जाती है, 
हाथ फेरती जैसे उसपर ||



थैंक्यू  रविकर अंकल! मेरी कविता को और अच्छी बनाने के लिए..... दोस्तों आपको पता है कि आप सब मेरी हर पोस्ट में सहायता करते हैं....पता है कैसे? ...अपने कमेंट्स के द्वारा....है ना?.... इसलिए thanks to all of you!!!






प्रेम की भाषा....



हेलो फ्रेंड्स!
पिछले कुछ दिनों से मैं आप सबसे सिर्फ़ अपनी घूमने की ही बातें की जा रही हूँ.... आप सब सोच रहे होंगे कि मैं सिर्फ़ घूमती ही रहती हूँ..लेकिन ऐसी बात नहीं है... मैं घूमने के साथ-साथ पढ़ने-लिखने और खेलने में भी  दिलचस्पी रखती हूँ... और जब चित्रकारी की बात आती है तो वो तो मेरा passion है.... चाहे मैं किसी भी हाल में रहूँ... अगर किसी ने कार्ड बनाने या स्कूल के किसी प्रोजेक्ट के लिए कह दिया तब तो मुझे वह करना ही है... बहुत कुछ है मेरे पास, जो मैं आप सबसे शेयर करना चाहती हूँ... अरेरेरे!!!........ एक मिनट.... मैं भी क्या-क्या बातें करने लगी.... मैं तो बस आज आप सबको अपनी लिखी कुछ टेढ़ी-मेढ़ी लाइनें दिखाना चाहती थी...


और ये रहीं वो लाइनें... साथ में मेरे द्वारा बनाया चित्र भी है....


प्रेम की भाषा
यूँ ही बैठे-बैठे मैं देख रही थी
अपनी खिडकी के बाहर,
थी एक गिलहरी नीम के पेड़ के ऊपर
कभी उछलती, कभी कूदती या चढ़ जाती पेड़ों पर
कोशिश करती उसको मैं, अपना दोस्त बनाने की
पर वो मेरी भाषा ही न समझती
जितना भी उसको समझाती, 
बस, घूर-घूर कर मुझे देखती,
इतने में ही आई मम्मी, 
और प्यार से समझाई-
"बेटी ,गिलहरी समझेगी तो सिर्फ़ प्रेम की भाषा"
सचमुच, अद्भुत!
प्यार से उसको ज्यों ही मैंने पुचकारा,
समझ ली उसने मेरी भाषा,
 और बन गयी मेरी पक्की दोस्त || 

हम्म्म्म....तो कैसी लगी आप सबको मेरी यह अनगढ़ कविता.....? वैसे आपको एक बात बताऊँ....ये कविता मैंने तब बनाई थी जब मैंने कवियत्री महादेवी वर्मा की कहानी ''गिल्लू'' पढ़ी थी..... 

अच्छा अब चलती हूँ अगली बार फिर आऊंगी अपनी किसी और Creativity के साथ... तब तक के लिए बाय...!!!!!!!! 






Friday, April 13, 2012

"बाग-ए-बहू"... मुग़ल गार्डेन

    
     तो फ्रेंड्स कैसी लगी मेरी वैष्णों देवी की यात्रा ?.... लेकिन एक मिनट रुकिए... मेरी पहाड़ी यात्रा अभी खत्म नहीं हुई है... हम लोग बहुत ज़्यादा जगह तो नहीं गए थे लेकिन वापस जम्मू आकर एक पूरा दिन हमने जम्मू में बिताया... तो वहाँ मैंने क्या-क्या देखा ये आप जानना नहीं चाहेंगे ?.... हम्म्म्म मैं जानती हूँ... आप ज़रूर जानना चाहेंगे... तो फ़िर देर किस बात की ?.... चलिए चलते हैं... आगे बढ़ते हैं.... 

     एक रात विश्राम के बाद हमारी बस फ़िर चल पड़ी... खाते-पीते, गेम खेलते, हम चले जा रहे थे कि अचानक हमारी बस एक जगह रुक गई.... हम सब उतर कर इधर-उधर देख ही रहे थे कि एक गेट दिखाई दिया जिसपर लिखा था... "बाग-ए-बहू".... बस फिर क्या था हम उस गेट के अंदर चल दिए.....

अभी फ़ोटो खिंचवाने का टाइम नहीं है...पहले बाग में घूम लें....जल्दी- जल्दी

अंदर का नज़ारा तो हम बस देखते ही रह गए... खूब सारे रंगबिरंगे फ़ूलों से भरा हरा-भरा बहुत ही सुन्दर बाग था ये....इतना-इतना-इतनाsss.... सुन्दर कि मैं क्या बताऊँ... बस अब आप खुद ही देख लीजिए... 


ये तो बस बाग का एक छोटा सा  हिस्सा है....
पूरे बाग की फ़ोटो को कैमरे में कैद नहीं कर सकते थे ना....:(
            

Smile please!!!:)

ये रही बाग के पहाड़ की चढ़ाई 
(मेरा मतलब मेरे पीछे देखिये पहाड़ी बाग की सीढियां)

मिट्टी से बनी कलाकृतियाँ

प्यारे-प्यारे फूलों के साथ मैं 


हा हा हा! ऊपर से तो कश्मीरी कपड़े हैं पर ज़रा नीचे तो नज़र डालिए!!!

भाई इस ड्रेस में कितना Sweet लग रहा है.... है ना !!!

गब्बू मामा और मैं...

बाग-ए-बहू के बाद हम सब "अमर पैलेस म्यूज़ियम" गए...ये है तो एक पैलेस पर अब इसे म्यूज़ियम के नाम से ही जाना जाता है....ये पैलेस तवी नदी के दाहिनी तरफ स्थित है....आइये, ज़रा इस पैलेस में चलते हैं...

कितना आलीशान महल है न ये!!!!
लेकिन नहीं ये महल नहीं बल्कि उसकी प्रतिकृति है 

Golden Throne !!!... पर इसे हम छू भी नहीं पाए बस बाहर से ही देख सके...:(


अरे बाप रे मेरा भाई कितना बहादुर है.....Brave boy!

वहाँ एक फ़ोटो गैलरी भी थी जिसमें दशावतार की बहुत सारी Modern Paintings लगी थी उन्हीं में ये भी थी....

मत्स्य अवतार !!!

कुण्डलिनी जागरण... अरे!!!! ज़रा मेरे प्रशांत मामा की आँखों को तो देखिये...:)

अमर पैलेस के  Garden में सैर.... 

पैलेस से तवी नदी का एक मनोरम दृश्य !!!

वहाँ एक और जगह भी हम गए थे जो अभी पूरी तरह से बना नहीं था लेकिन फिर भी जितना बना वो भी बहुत सुन्दर लग रहा था... मुझे ठीक से तो याद नहीं लेकिन ये शायद अखंड ज्योति संसथान द्वारा बनवाया जा रहा स्थान है... यहाँ सभी भगवान जी के ढेर सारे मंदिर और विशालकाय मूर्तियां थी और इस स्थान का नाम रखा गया है... "हरिद्वार".... अरे नहीं नहीं चौकिये नहीं... ये उत्तराँचल वाला हरिद्वार नहीं जम्मू में बन रहा नया नया हरिद्वार है... ये देखिये वहाँ की मूर्तियां....

ये देखिये मंदिर की छत पर बने बड़ेssss से गणपति !!!

और ये विशालकाय बजरंगबली... बाप रे !!!... कितने बड़े!!!!! 

ये हमारी यात्रा का अंतिम पड़ाव था.... इसके बाद हम लौट चले वापसी की यात्रा पर... और एक बार फिर से आ गए जम्मू स्टेशन...


टा-टा जम्मू शहर.... बहुत मज़ा आया यहाँ....
मैं फिर आऊँगी.....सायोनारा...!!!!!!! 

चलिए अब आप सब भी वापस आ जाइये जम्मू की चिलचिलाती ठंड से निकलकर, अप्रैल की गर्मी में.... स्लीपिंग बैग्स, स्वेटर वगैरह पैक करके रख दीजिए... ठंडी-ठंडी लस्सी या शरबत पीकर अपनी गर्मी दूर भगाइए तब तक मैं भी आती हूँ.... बस थोड़ा सा आराम करके....

बाय-बाय....!!!!.... सायोनारा !!!!





Monday, April 9, 2012

जय माता दी



ये पूरा संस्मरण मैंने अपनी डायरी में लिख रखा है
और उसमें ये ड्राइंग भी मैंने बनाई है.....


नंदन पहाड़ घूमने के बाद तो मुझे बस वही याद आता था.... और मैं मम्मी-पापा से वापस नंदन पहाड़ जाने की ज़िद करती रहती थी... भगवान ने मेरी सुन ली, और जल्दी ही मैं एक बार फिर पहाड़ों का मज़ा ले पाई थी... आपको पता है कैसे?...... नहीं?.... अच्छा ठीक है.... चलिए मैं आपको अपनी इस यात्रा के लिए ले चलती हूँ... और हाँ! यात्रा के दौरान बहुत ठंड लगेगी आखिर हम हिल स्टेशन जाने वाले हैं ना.... इसलिए खूब सारे गर्म कपड़े अपने साथ ज़रूर रख लीजियेगा...

नवंबर 2007 में जब मैं अपने मामा की शादी के लिए कानपुर गयी, तब शादी के बाद सबने मेरी नई मामी के साथ वैष्णों देवी जाने की योजना बनाई... और ये सुनकर कि मैं दोबारा पहाड़ देख सकूंगी, मैं बहुत खुश हो गई... जल्दी-जल्दी हम सबने गर्म कपड़े, स्लीपिंग बैग, खाने का सामान वगैरह रख कर तयारी की और यात्रा पर निकल पड़े... जब सारे लोग स्टेशन पर सामान वगैरह रख कर एक साथ खड़े हुए तो मैं तो हैरान रह गई....बाप रे!!!!!!.... इतने सारे लोग!!!!!...... पता है ट्रेन की लगभग आधी बोगी तो हमारी ही थी...:) और होती भी कैसे ना?... इतने सारे लोग जो गए थे.... हब सब छोटे-बड़े कुल मिलाकर पूरे सत्ताईस लोग थे... हमने ट्रेन में भी बहुत मस्ती की थी.... पता है, जब कभी अन्त्याक्षरी खेलते तब वो पूरी बोगी कोई स्टूडियो जैसी लगने लगती, और जब हम हाईड & सीक खेलते तो समझ में ही नहीं आता कि कौन कहाँ और किसके पास छुप गया है?... और जब रात हो गई तब हम सब अपने-अपने स्लीपिंग बैग्स में घुस कर आराम से सो गए..... 

सुबह-सुबह हम सब जम्मू स्टेशन पहुँच गए....

ये रहा हमारा काफ़िला, ये भी पूरे नहीं हैं दो-चार कम ही हैं...)
 और फिर वहाँ से बस में निकल पड़े माँ के दर्शन के पहले पड़ाव यानि "कटरा" के लिए... बीच में हम एक जगह कहीं रुके मुझे लगा हम पहुँच गए... लेकिन नहीं ये तो बस एक छोटा सा पड़ाव था... अभी तो सफ़र बहुत लंबा था.... 

जम्मू से कटरा के रस्ते में एक छोटा सा पड़ाव... मेरे साथ 
स्वाति और संगीता मौसी, पूनम दीदी, आयुष मामा, 
पंकज मामा, शालिनी(नई) मामी और मम्मी  

कटरा पहुंच कर सबसे पहले हम त्रिकुटा भवन पहुंचे और वहाँ पर फ़्रेश होकर वॉक के लिए बाहर आ गए... 

वो देखिये हमारे पीछे है "त्रिकुटा भवन"


त्रिकुटा भवन से कटरा के एक चौराहे का दृश्य 

वहाँ एक स्टूडियो में हमने कश्मीरी ड्रेस में फ़ोटो भी खिचवाये... आइये आपको भी दिखाऊँ...




ये है काश्मीरी "रुनझुन" 


और ये है रुनझुन का काश्मीरी भाई "शाश्वत"


कुछ  देर बाद हम त्रिकुटा भवन में वापस लौट आए... रात का खाना खाने के बात एक बार हम फिर तैयार थे आगे की यात्रा के लिए...



हम सब तैयार हैं !!!


थोड़ी ही देर में एक बस आई और हम सब उसमे सवार हो गए|... मम्मी ने बताया कि ये बस हमें उस जगह ले जाएगी जहाँ से हमें चलना शुरू करना है... मतलब Starting point... बस से उतरते ही मम्मी ने मुझे बताया- '' बेटा,वो जो दूऊऊऊऊऊऊर बहुत ऊंचाई पर रौशनी दिखाई दे रही है ना, वहीं हमें जाना है''...  बाप रे! हमें इतना चलना होगा? मैं तो सिर्फ़ अभी छोटी सी बच्ची हूँ, इतना कैसे चल पाऊँगी?... पर जिन लोगों को घूमने की सुध लगी रहेगी उन्हें तो कुछ भी चलेगा...है ना?... 


और अब शुरू हुई हमारी असली यात्रा.... पैदल-पैदल... पांवों में जूते और हाथों में सहारे के लिए लाठियाँ लेकर, मन में माँ के दर्शन की आस लिए "जय माता दी" के जयकारे के साथ हम बढ़ चले अपनी रोमांचक यात्रा पर....  रास्ते में जब-जब हम थक जाते तो कहीं रूककर थोड़ा आराम करते तब मम्मी मेरे थके पैरों को दबाकर मेरा हौसला बढ़ाती... पता है उस पूरे बड़े से ग्रुप में पैदल जाने वाली मैं सबसे छोटी यात्री थी (just 6 years old)... मुझसे छोटे सारे बच्चे या तो पिट्ठू पर थे या फिर baby bag में...


सचमुच बहुत थक गयी थी मैं....:(

ऊपर चढ़ते समय नीचे शहर का खूबसूरत नज़ारा 
अगली सुबह हम अर्ध-कुमारी पहुँच गए... जयकारे तेज़ हो गए और लंबी लाइन में लगकर खिसकते हुए हम गुफा के द्वार पर पहुंचे... इतना पतला..छोटा..संकरा रास्ता... मैं तो देखकर ही घबरा गई... इसमें मैं कैसे घुस सकती हूँ... लेकिन फिर मैंने देखा सभी बड़े लोग लेटकर उसमें घुस रहे हैं... मम्मी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे लिटाकर आगे की ओर खिसका दिया.. आगे पापा थे पीछे मम्मी और बीच में मैं... मुझे सचमुच नहीं पता मैं रेंगकर कैसे वहाँ से बाहर निकली... लेकिन हाँ, बाहर आने बाद बहुत मज़ा आया... मुझे लगा मैं एक बार फिर से उस गुफा में जाऊं.... लेकिन इसके लिए फिर से लंबी लाइन लगानी पड़ती... इसलिए मुझे अपना इरादा बदलना पड़ा और हम आगे की यात्रा पर निकल पड़े... अब सुबह हो चुकी थी और ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के दृश्य बहुत ही सुन्दर लग रहे थे... हम मस्ती में नाचते, झूमते-गाते... जयकारा लगाते आगे बढ़ने लगे... 
वो देखिये पापा के पीछे मैं भी हूँ....
अँधेरा होने के पहले हम भवन पहुँच गए... उफ़! हम सब थक कर बुरी तरह चूर हो चुके थे और ऊपर से कड़ाके की ठंड... बहुत बुरा हाल था हम सबका ... खाना खाकर जब हम होटल में सोने गए तो फिर कुछ होश नहीं था... सुबह जब मम्मी ने जगाया तो मुझे तो पहले कुछ समझ में ही नहीं आया कि मैं कहाँ हूँ... खैर थोड़ी देर बाद हम सब नहा-धो के फिर से तैयार हो गए ...
बस अब थोड़ी ही देर में ये कारवा माता के दरबार में पहुँचने वाला है
मैं भी तैयार हूँ !!!
बिलकुल चुस्त-दुरुस्त !!!


और हमारा कारवां चल पड़ा पवित्र गुफा के दर्शन के लिए... 


माँ का दरबार 
जयकारा शेरावाली का... बोल सांचे दरबार की जय!!!
मुझे तो माता जी का जयकारा लगाने में बहुत मज़ा आ रहा था... मुझे लगा यहाँ भी गुफा में रेंगकर जाना होगा... लेकिन नहीं यहाँ तो गुफा के दो द्वार बने थे एक अंदर जाने के लिए और एक बाहर आने के लिए... हम सब अंदर गए माता की पिंडियों का दर्शन किया और बाहर निकल गए.... वहाँ गुफा में थोड़ा-थोड़ा पानी भी था... बाहर आकर मुझे बहुत अच्छा लगा... आखिर इतनी दूर से इतना पैदल चल कर हम जिस लिए आए थे वो पूरा हो गया..... मुझे लगा अब बस अब हम लोग वापस नीचे चलेंगे.... पर तभी पता चला कि नहीं अभी हमें और चढाई करनी है क्योंकि हम सब अब भैरों नाथ जायेंगे... मुझे तो लगा अब मैं और नहीं चढ़ पाऊँगी लेकिन जब सब लोग ढोल मजीरे के साथ नाचते-गाते आगे बढ़े तो पता नहीं मैं भी कैसे सबके साथ चलने लगी... और कुछ देर की यात्रा के बाद हम भैरों नाथ पहुँच गए... 


भैरों मंदिर 
मम्मी, नानी, रचित और मैं  
भैरो मंदिर में 
मैं, मम्मी, पापा और भाई 
हम हैं तैयार!!!... अभी बहुत दूर जाना है....
मैं... पापा, प्रशांत मामा, राजन मामा, सोनू मामा, रचित और भाई के साथ 
बाप रे!.... वहाँ इतने सारे लंगूर और बन्दर थे कि पूछिए मत... लेकिन वो सब बहुत ही अच्छे थे वे किसी को काट नहीं रहे थे बल्कि कुछ बड़े लोग तो उन्हें अपने हाथों से मूंगफली खिला रहे थे... लेकिन बाबा मुझे तो डर लग रहा था मैं तो उनके पास भी नहीं गयी... और फिर वहाँ दर्शन करने के बाद हमने नीचे उतरना शुरू किया... रास्ते में हम हाथी-मत्था और सांझी-छत पे भी रुके वहाँ से हमने हेली पैड भी देखा.     








वो देखिये हमारे पीछे सांझी-छत का हेलीपैड दिख रहा है न!!!




मैं हिमालय की गोद में !!!


इस यात्रा की कुछ और इंटरेस्टिंग यादे आप से शेयर करूँगी... पर आज नहीं कल... आज तो मैं बहुत थक गयी हूँ और इतना पढ़ते-पढ़ते आप भी थक चुके होंगे.... तो फिर मिलते हैं... रेस्ट के बाद.... आई मीन ब्रेक के बाद.....:))
  




      

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