रुनझुन की बातों का सिलसिला बस यूँ ही शुरू हो गया था... बहुत कुछ था जो संजोना चाहती थी... अपनी लाडली को, उसके बचपन की ढेरों मीठी यादों... भोली बातों से सजा एक गुलदस्ता भेंट करना चाहती थी... लेकिन ये सब कैसे और कब करूँगी खुद भी नहीं जानती थी... बस यूँ ही एक दिन मेरी अभिन्न मित्र प्रतिमा का एक ब्लॉग देखा पंखुरी टाइम्स और जाने कहाँ से ये एक खयाल चुपचाप मेरे अंदर आकर बैठ गया कि शायद यही वो जगह है जहाँ मैं सबसे ख़ूबसूरत ढंग से अपनी नन्ही की बातों को सहेज सकती हूँ... ये ख्याल बस ख्याल ही रह जाता अगर एक दिन प्रतिमा ने (जो हमेशा ही मेरा अंतर्मन पढ़ लेती हैं) मेरे मन की बात अपने मुँह से न कह दी होती... उन्हीं की हौसला आफ़जाई और पहल के फलस्वरूप ये ब्लॉग अस्तित्व में आया... और वो सारी बातें... उसके मासूम बचपन की वो सारी यादें... जो मुझे सौंपना था अपनी बेटी को... काफी हद तक मैंने यहाँ इकट्ठी कर दी... इस दौरान कई बार कई तरह की मनःस्थितियों से भी गुजरी... कभी तो बड़े ही मनोयोग से उसकी बातें लिखती और सबके कमेंट्स पढ़ कर खुश भी होती लेकिन फिर कई बार ये भी लगता कि मैं यहाँ ये सब क्यों लिखती हूँ... मेरी नितांत निजी भावनाओं से किसी को क्या लेना-देना... मेरी तरह लगभग हर माँ अपने बच्चे के साथ ऐसे ही पलों को जीती और महसूसती है तो फिर मेरे साथ नया क्या है जो मैं यहाँ लिखती रहती हूँ... लेकिन फिर अगले ही पल खुद को ही समझाती कि ये सब तो मैं अपनी बेटी से उसका बचपन साझा कर रही हूँ तो फिर औरों की सोच परेशान क्यों होती हूँ... तब एक विचार यह भी आता कि फिर इस ब्लॉग को सार्वजनिक करने और उसपर लोगों की प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार मुझे क्यों रहता है... ऐसे में फिर प्रतिमा दी ही मेरा हौसला बढ़ाती- 'तुम कुछ मत सोचो बस लिखती जाओ' और मैं फिर से लिखने को कटिबद्ध हो जाती.... इस तरह ढेरों सकारात्मक-नकारात्मक विचारों... अनियमितताओं के बीच भी अगर लिखना जारी रहा तो इसकी सबसे बड़ी वजह मेरी रूहानी शक्ति प्रतिमा के द्वारा की गई हौसला आफ़जाई, मेरे अपनों की खुशी और आप सब ब्लॉगर दोस्तों का साथ ही था... जिन्होंने हमेशा अपने सार्थक कमेंट्स के द्वारा मुझे ये एहसास कराये रखा कि मेरा लिखना निरर्थक नहीं है|
हाँ, इन सबका एक सबसे ज़्यादा सकारात्मक प्रभाव ये रहा कि मेरी बेटी ने अन्य ब्लॉगों को पढ़ने और उनपर अपने छोटे-छोटे कमेंट्स देने के साथ ही कुछ ब्लॉगर दोस्त भी बना लिए और वो अब खुद भी लिखने में रूचि लेने लगी है जो मैं हमेशा से चाहती थी (क्योंकि मेरी बेटी बहुत ही अंतर्मुखी है... अपने मन की बात जल्दी किसी से न कहना... अपने आंसू... अपनी तक़लीफें अंदर ही अंदर पी जाना, न जाने कैसे उसने बचपन से ही सीख लिया है... ऐसे में मेरा मानना है कि लेखन उसे हमेशा खुद को संभालने में काफी मददगार साबित होगा)... इसलिए अब ये प्लेटफॉर्म मैं उसे सौंप रही हूँ... ताकि अब वो यहाँ अपने रंग खुद सजा सके... अपनी बातें खुद कर सके...
आप सबका साथ, प्यार और आशीर्वाद उसके साथ हमेशा बना रहे... उसकी कच्ची लेखनी को आपका सच्चा मार्गदर्शन मिलता रहे... बस इसी मंगल कामना और शुभेच्छा के साथ आज "चैत्र शुक्ल प्रतिपदा" के दिन ये ब्लॉग एक नए आगाज़ की ओर बढ़ रहा है....
तो बस थोड़ा सा इंतज़ार.... अगली पोस्ट में रुनझुन खुद आपसे बातें करेगी....
इति शुभम!
नव संवत्सर का आरंभन सुख शांति समृद्धि का वाहक बने हार्दिक अभिनन्दन नव वर्ष की मंगल शुभकामनायें/ सुन्दर प्रेरक भाव में रचना बधाईयाँ जी /
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