हैलो फ्रेंड्स !!!
अपने स्कूल के बारे में बातें करते-करते एक बहुत ही ज़रूरी बात तो मैं भूल ही गयी... ये मार्च का महीना है और कुछ ही दिनों पहले हमने खुशियों से भरे रंग-बिरंगे त्यौहार को मनाया है... तो फिर इससे पहले कि ये महीना बीत जाये हम इस त्यौहार की भी कुछ बातें कर लेतें हैं...
शुरुआत करती हूँ तब से जब मैं एक साल की थी... मम्मी बताती हैं कि जब मैं एक साल की थी तब मैं रंगों से और सबके भूत जैसे चेहरों को देखकर बिलकुल भी नहीं डरी थी और खूब होली खेली थी....
देखिये रंग लगाकर भी मैं कितनी खुश हूँ! |
लेकिन उसके बाद वाली होली पर मैं बहुत डर गयी थी और जैसे ही कोई किसी को रंग लगाने जाता मैं रोने लगती... और फिर सब मुझे बहलाने लगते... देखिये यहाँ भी पापा और राजन मामा मुझे हंसाने की कोशिश कर रहे हैं....
पिचकारी तो हाथ में है लेकिन रंग नहीं खेलना |
कितनी बुद्धू थी ना तब मैं...:) लेकिन जब मैं बड़ी हो गयी और थोड़ी समझदार हो गयी तब तो मैंने खूब इंज्यौय किया... और क्यों न करती अब मैं दीदी जो बन गयी थी...
अरे! भूत दीदी से भाई तो बिलकुल भी नहीं डरा ह्म्म्म्म्म् भाई तो और भी निडर निकला !!! |
और उसके बाद वाली होली तो और भी मज़ेदार थी क्योंकि इस बार तो पटना में मेरे ढेर सारे फ्रेंड्स भी थे मेरे साथ मस्ती करने के लिए....
मुझे पहचाना!...बताइए इनमें से मैं कौन सी हूँ? |
लेकिन सबसे ज़ोरदार होली तो तब हुई थी जब हम बनारस में थे वहाँ तो हमने इतने सारे रंग एक-दूसरे को लगाये थे कि सारे लोग काले भूत बन गए थे....
मैं और अनिकेत |
काले-काले भूत!!!!!!!! |
पिछले साल होली पर मैं गाँधीधाम आ चुकी थी और यहाँ एक भी दोस्त नहीं था, मैं बहुत दुखी थी लेकिन तभी अचानक होली के एकदम पहले दादू और नेहा दीदी आ गए फिर तो मज़ा आ गया हमने खूब मस्ती की... एक दिन पहले हम सब होलिका दहन देखने गए... मुझे ये देखकर बहुत अच्छा लगा कि यहाँ की होलिका Eco-friendly होती है.....
गोबर के उपलों से तैयार की गयी होलिका के चारो तरफ़ सुन्दर सी रंगोली बनायी जाती है.
और फिर सब लोग इकठ्ठे होकर उसके चारों ओर परिक्रमा करते हुए पूजा करते हैं और होलिका में आग लगाते यानि होलिका-दहन करते हैं....
और फिर अगली सुबह तो धमाल ही धमाल... लेकिन हाँ पिछले साल यहाँ थोड़ी ठंड थी और नेहा दीदी को बुखार भी था तो हमने सूखी होली यानि गुलाल के साथ ही ज़्यादा मस्ती की थी... इसलिए इसबार हम सब काले भूत नहीं बल्कि चलते-फिरते इन्द्रधनुष बन गए थे...
ये देखिये ये हैं हम... होली के रंग में रंगे हुए..:) |
कितना सुन्दर मेकअप है ना....:) |
और ये रही इस साल यानि 2012 की होली.... सुबह-सुबह भगवान के चरणों में गुलाल अर्पित करके, बड़ों को प्रणाम करके, रंग, अबीर-गुलाल लेके पूरी तैयारी के साथ हम निकले पड़े....
हम हैं तैयार... रंग-गुलाल और पिचकारी के साथ!!! |
इस बार कैम्पस में कुछ ही दिन पहले आए मेरे नए दोस्तों के साथ मैंने खूब मस्ती की.... कभी हम रंगीन पानी से तरबतर हो जाते तो कभी रंगबिरंगे अबीर-गुलाल से सबके चहरे इन्द्रधनुष जैसे खिल जाते... हमारा पूरा कैम्पस रंगबिरंगा हो गया था...
आज ना छोड़ेंगे...... |
और हाँ अपने सबसे प्यारे दोस्त यानि पेड़ -पौधों के साथ भी मैं होली खेलना नहीं भूली... पिचकारी की धार में नहाकर देखिये ये सब भी खिल उठे.....
सरररररर!!!!!!!!!!!!!........ होली है!!!!!!! |
तो ये थी हमारी होली की मस्ती.... इसके बाद नहा-धो कर, साफ-सुथरे होकर हमने नए-नए कपड़े पहने... और तब तक भूख बहुत ज़ोरों से लग चुकी थी, तरह-तरह के पकवानों की खुशबू से हमारे मुँह में पानी आ रहा था... बस फिर क्या था.... हम सब खाने पर टूट पड़े.... अरे-अरे आप निराश मत होइए आपके लिए भी मैं कुछ बचाके लायी हूँ..... ये देखिये.......
ये हैं गांधीधाम की होली स्पेशल जलेबियाँ !!!!! |
जी हाँ यहाँ होली पर गुझिया नहीं बल्कि जगह-जगह ये स्पेशल जलेबियाँ खूब मिलती हैं... होली के एक हफ्ते पहले से ही जगह-जगह दुकाने सज जाती हैं... बड़े-बड़े कड़ाहे चढ़ जाते हैं और ये गर्मागर्म जलेबियाँ (जिसे यहाँ घेवर कहते हैं) बिकनी शुरू हो जाती हैं...
अरे लीजिए-लीजिए आप भी खा के देखिये बड़ी स्वादिष्ट हैं ये जलेबियाँ... तो आप इनके स्वाद का मज़ा लीजिए मैं तो अब बहुत थक गयी हूँ इसलिए अभी चलती हूँ थोड़ा आराम करके फिर आऊँगी... तब-तक के लिए.....बाय!!!!!!!!