Wednesday, April 20, 2011

एक कहानी...सपनों के सच होने की....

इससे पहले की आप  उस प्यारी परी की दुनिया का हिस्सा बनें उसकी कहानी की भूमिका ज़रूरी है...तो ये रही भूमिका उसी कहानी की...ये भूमिका... जो साक्ष्य भी है उस कहानी के यथार्थ में परिवर्तित होने की सुंदर-सुखद यात्रा की...! नहीं कहा जा सकता कि अनुभूतियों को शब्दों में बांध कर व्यक्त करने की प्रक्रिया कितनी प्रभावी होती है लेकिन शब्द यदि भाव के साथ तनिक भी न्याय कर सकतें हो तो ये तय है ...अब जो कुछ व्यक्त होने जा रहा है उसे उससे बेहतर किसी भी तौर पर नहीं कहा जा सकता.... 




ये है कहानी एक सपने की... कहानी एक सपने के हक़ीक़त में तब्दील होने की... कहानी एक परियों की शहज़ादी की... कहानी एक सपनों से भी सुन्दर... परी कथा से भी ज़्यादा स्वप्निल हक़ीक़त की.....
  इस कहानी का ताना-बाना जुड़ा है... या यूँ कह लीजिए इस कहानी की नींव पड़ी आज से लगभग दस वर्ष पूर्व या उससे भी कहीं पहले... शायद तब से जब ये कहानी एक कल्पना मात्र थी....
  इसकी नींव को ठोस आधार मिला फ़रवरी 2001 की उस मुबारक़ ख़ुशनुमा सुबह को जब सारी शंकाओं-आशंकाओं को निर्मूल साबित करते हुए ये प्रमाणित हो गया कि हम दोनों के जीवन में एक नन्हे सपने ने... एक नन्ही आशा ने चुपके से अपने पाँव रख दिए हैं... इस नन्ही किरन के आगमन का एह्सास मात्र हमें न जाने किस सपनीली दुनिया में ले गया... इस नन्ही किरन का हमारे जीवन में आना कोई अप्रत्याशित घटना नहीं बल्कि जन्मों से देखे किसी प्यारे सपने के हक़ीक़त में बदलने जैसा था...

 ....न भूला है वो दिन... न भूलेगा वो पल...

   ...और बस... वो दिन और उसके बाद के सारे दिन... सारी रातें... अपने उस सपने की बातें करते... उसे महसूसते ही बीतने लगे... सपना एक नन्ही किरन का... सपना एक नन्ही आशा का... सपना एक नन्ही परी का... जिसे महसूस तो हम हर वक़्त करते थे... लेकिन हाथ उसके नाज़ुक स्पर्श को बेचैन थे... बाहें उसे गोद में उठा चूमने को आतुर थीं...
  घंटों बैठ हम उस नन्ही किरन के प्रतिपल बढ़ते दायरे और उसकी रोशनी से उपजती चमक, जो दिन-रात हमारे तन-मन को नवीन प्रकाश से आलोकित कर अद्भुत आनन्द के सागर में डुबो रही थी, की बातें करते... और साथ ही प्रतीक्षा उस दिन की जब कोई परी आकर अपनी जादुई छड़ी से उस किरन को छुएगी... और वो... रुनझुन करती हमारे आँगन में नाच उठेगी...
      यूँ ही सपनों में डूबते-उतराते... ख़्वाबों के हिंडोले पर झूलते हमारे दिन पंख लगाकर उड़ने लगे....और हमारे साथ हमारी खुशियों में शामिल होती रहीं हमारे अपनों की दुआएँ....उनकी शुभकामनाएँ... प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप में ......








ये सिर्फ शुभकामनाएँ ही नहीं बल्कि एक विश्वास था....एक एहसास था  उनके हर पल करीब  होने का.... हमारे साथ हमारी खुशियों में शामिल होने का... हमारे एहसासों के साथ हमकदम होने का.....
     सच कहूँ तो कहीं न कहीं हमारे इंतजार के उन बेसब्र पलों में ये उनके हमारे साथ होने के एक भरोसे के साथ ही था उस नन्ही किरन से उनके नए रिश्ते का.... उनके प्यार का  इजहार भी ..... 


और फिर इंतज़ार के नौ महीने कैसे पंख लगाकर उड़ गये ....
पता ही नहीं चला !


2 comments:

  1. :)
    bahot pyari aur masoom si yaadon ki saakshaat zubaani hai..
    Han, Ehasaas har maa karti hai..
    par yun ehsaason ki aisi taazagi badi rumaani hai..

    Cards bahut pyare hain...

    ReplyDelete
  2. kisna sundar anmol ehsaas.........

    ReplyDelete

आपको मेरी बातें कैसी लगीं...?


Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...