दोस्तों, आज छठ पूजा का पारण था और इसी के साथ चार दिनों का ये महापर्व समाप्त हो गया....
कल शाम इस पर्व का सबसे बड़ा दिन था जब अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है... बिहार में यह पर्व सबसे ज्यादा उत्साह और बड़ी संख्या में मनाया जाता है... और कल ही के दिन बिहार की राजधानी पटना में ठीक उसी समय दिल-दहला देने वाला हादसा हुआ जिसमें करीब बीस लोगों की मृत्यु हो गयी, बहुत सारे घायल हो गए और इसमें सबसे ज्यादा संख्या बच्चों की थी... टी. वी. में ये न्यूज़ देखकर मैं हतप्रभ रह गयी... जिन लोगों के साथ ये हादसा हुआ उनपर क्या गुजर रही होगी... कुछ ही देर पहले जहाँ इतनी हंसी-ख़ुशी, श्रद्धा और भक्ति का माहौल था वही अचानक भयानक मातम पसर गया... वो सारे लोग तो पूरी श्रद्धा के साथ भगवान् की पूजा कर रहे थे न, तो फिर भगवान् ने उनके साथ ऐसी दुर्घटना क्यों होने दी....?????
दो-ढाई वर्ष पूर्व जब मैं पटना में रहती थी तो मैंने बहुत ही नजदीक से इस पर्व को देखा था और मैं भी इसमें शामिल रहती थी हमारे अपार्टमेंट की छत पर ही घाट बनाया जाता था जिसे केले और अशोक के पत्तों, फूलो और बिजली की झालरों से सजाया जाता था... हम सब बच्चे बड़े ही उत्साह के साथ भाग-भागकर इसकी तैयारियों में शामिल रहते थे...
यह त्योहार सूर्य देव को पृथ्वी पर सबको सुखी रखने के लिए धन्यवाद कहने और कुछ इच्छाएं मांगने के लिए मनाया जाता है। छठ पूजा हिंदी कैलेण्डर के कार्तिक महीने के चौथे दिन से प्रारंभ होती है और 4 दिन तक चलती है... पहला दिन- नहाय खाय, दूसरा- खरना, तीसरा- छठ और चौथा दिन पारण के नाम से जाना जाता है... छठ एकमात्र ऐसा पर्व है जिसका पंडितों से कोई रिश्ता नहीं रहता...
इस त्योहार का वैज्ञानिक महत्त्व भी है... इस दिन सूर्य की अल्ट्रा-वायलेट किरणें सबसे अधिक मात्रा में पृथ्वी तक पहुंचती हैं जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हैं... सूर्य देव की ओर मुंह करके खड़े रहने और पानी में आधे डूबे रहने के कारण रेडिएशन उत्पन्न होता है और रेडिएशन की सहायता से त्वचा के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं यानि अल्ट्रा वायलेट किरणों से होने वाली हानि घट जाती है |
यह त्योहार सूर्य देव को पृथ्वी पर सबको सुखी रखने के लिए धन्यवाद कहने और कुछ इच्छाएं मांगने के लिए मनाया जाता है। छठ पूजा हिंदी कैलेण्डर के कार्तिक महीने के चौथे दिन से प्रारंभ होती है और 4 दिन तक चलती है... पहला दिन- नहाय खाय, दूसरा- खरना, तीसरा- छठ और चौथा दिन पारण के नाम से जाना जाता है... छठ एकमात्र ऐसा पर्व है जिसका पंडितों से कोई रिश्ता नहीं रहता...
इस त्योहार का वैज्ञानिक महत्त्व भी है... इस दिन सूर्य की अल्ट्रा-वायलेट किरणें सबसे अधिक मात्रा में पृथ्वी तक पहुंचती हैं जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हैं... सूर्य देव की ओर मुंह करके खड़े रहने और पानी में आधे डूबे रहने के कारण रेडिएशन उत्पन्न होता है और रेडिएशन की सहायता से त्वचा के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं यानि अल्ट्रा वायलेट किरणों से होने वाली हानि घट जाती है |
दोस्तों यहाँ गांधीधाम में तो छठ नहीं मनाया जाता पर पटना में सभी आन्टी इस त्यौहार को बहुत हर्षौल्लास के साथ मानती थीं.... आइये आपको वहां के छठ की एक झलक दिखलाती हूँ....
छठ के दिन अस्ताचलगामी सूर्य देव
छत पर बने कृतिम घाट
जल में खड़े होकर सूर्य-देव की आराधना करती स्वीटी आंटी और अर्घ्य देती मैं
मैं तो आपको देख रही हूँ लेकिन आप मेरे पीछे देखिये जहाँ आंटी लोग सूर्य-देव की आराधना कर रही हैं....
कोसी भरना (इसके बारे में मुझे ज्यादा कुछ नहीं मालूम)
मिटटी का खूबसूरत हाथी जो कोसी में रखा जाता है
छठ पर्व की समाप्ति पर आइये हम सब मिलकर सूर्य-देव से प्रार्थना करें कि वो हमें सभी प्राकृतिक आपदाओं से बचाएं... हमें इतनी बुद्धि और विवेक दें की हम सही गलत के फर्क को समझ सकें और दूरदर्शिता से काम लेकर आने वाली आपदाओं से खुद को सुरक्षित रख सकें !!!
बहुत अच्छा सचित्र लेख है |
ReplyDeleteआशा