अगस्त २००५... छुकछुक गाड़ी में रुनझुन का एक और सफर... लेकिन इस बार सफर में खेलने के लिए नन्हा भाई भी उसके साथ था... और वो जा रही थी रांची दादा-दादी के पास जहाँ १० अगस्त २००५ को भाई का अन्नप्राशन संस्कार होना था... रुनझुन बहुत ही उत्साहित और कौतूहल से भरी थी... एक नज़र डालते हैं रुनझुन की इस रेलयात्रा पर....
और अब बात अन्नप्राशन के निमंत्रण-पत्र की... तो इस बार भी निमंत्रण-पत्र हस्त-निर्मित ही था और रुनझुन की ओर से ही था... हाँ... इस बार का सारा निमंत्रण-पत्र कोमल मौसी ने अपने हाथों से बनाया था... और रुनझुन की ओर से लिखा भी उन्होंने ही था... ये रंग-बिरंगा कार्ड रुनझुन को तो बहुत ही पसंद है... ज़रा देखिये आपको कैसा लगता है.....
रांची में जगन्नाथ मंदिर में भाई का अन्नप्राशन होना था...रुनझुन बड़े ही उत्साह के साथ वहाँ पहुँची लेकिन नन्ही सी रुनझुन इतनी सारी सीढ़ियाँ देखकर परेशान हो गई.... कैसे चढ़ेगी ???.... आखिरकार दादी की मदद से वो ऊपर पहुँच ही गयी... और... तब... भाई का अन्नप्राशन संस्कार आरम्भ हो गया... कैसे और क्या-क्या हुआ ??... आइये देखते हैं....
सबसे पहले मामा ने भाई को मंदिर में भगवन जी का दर्शन कराया.... पंडित जी ने माला पहनाई.... और फिर...
भाई को प्यारी सी छोटी सी धोती पहनाई गई फिर मामा ने चाँदी की कटोरी में चाँदी के चम्मच से भाई को खीर खिलाई...
( हाँ एक मज़ेदार बात तो बताना भूल ही गई... खाने के मामले में लगता है भाई को कुछ ज्यादा ही हड़बड़ी थी तभी तो भाई का अन्नप्राशन भी पांचवें ही महीने में हो गया और भाई का पहला दांत भी पांचवे महीने में ही निकल आया.)
( हाँ एक मज़ेदार बात तो बताना भूल ही गई... खाने के मामले में लगता है भाई को कुछ ज्यादा ही हड़बड़ी थी तभी तो भाई का अन्नप्राशन भी पांचवें ही महीने में हो गया और भाई का पहला दांत भी पांचवे महीने में ही निकल आया.)
फिर सब बहनों ने एक रस्म के मुताबिक बारी-बारी से भाई को प्यार और आशीर्वाद दिया...
उसके बाद एक बार फिर भाई का गेटअप चेंज किया गया और अब वो नन्हा कान्हा बन चुका था....(टकलू कान्हा...हा-हा-हा)
अन्नप्राशन के अगले दिन सुबह दादी ने भाई को रसगुल्ला खिलाया... रुनझुन खुश... भाई को तो ठीक से खाना आता नहीं था लेकिन रुनझुन ने मज़े ले-लेकर रसगुल्ले खाए....
रसगुल्ले की पूरी प्लेट रुनझुन के हवाले |
और फिर एक दिन बाद भाई को अनाज यानि दाल-चावल, सब्जियां भी खिलाई गयी... लेकिन रुनझुन ये सोच कर हैरान थी कि सब लोग भाई को खाना खिलाने की इतनी कोशिश क्यों कर रहे हैं...!!!... अभी तो उसके दांत ही नहीं है जब उसके भी रुनझुन जैसे ढेर सारे दांत आ जायेंगे तो वो खुद ही खाने लगेगा...
...लेकिन अब ये छोटी सी बात वो इन बड़े लोगों को कैसे समझाए...
है कोई तरकीब किसी के पास......??????????
रुनझुन ! बहुत अच्छा लगता है आपके ब्लॉग पर!
ReplyDeleteभाई के साथ खूब खेलो मस्त रहो!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्र!
ReplyDeleteशुभाशीष!
:)
ReplyDeleteखूबसूरत ||
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