प्रिय दोस्तों,
आज जब मुझे ये खबर प्रतिमा मौसी से मिली तो मैं हतप्रभ रह गयी... कुछ देर तक तो लगा जैसे मुझे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है.... मुझे तो जैसे इस खबर पर विश्वास ही नहीं हो पा रहा है...
अभी तो जून में मैं नानाजी से मिली थी.... उनके साथ हमने कितनी सारी मस्ती की थी...नानाजी की वह आवाज़... नानाजी का कविताएँ सुनाने का ढंग... सब कुछ मेरे कानों में अभी भी गूंज रहा है... नानाजी कविताएँ सुनाते वक्त उनमें खो जाते थे....बिलकुल हम बच्चों की तरह.... इस साल जब मैं नानाजी से मिली थी तो मुझे पहले से भी ज्यादा मज़ा आया था.... उन्होंने हमें ढेर सारी कहानियाँ और कविताएँ सुनाई थीं... इस बार मैंने नानाजी से वादा किया था की मैं अगले वर्ष और ढेर सारी कविताएँ, कहानियां और वो सारी तुकबंदियाँ लेकर आउंगी... लेकिन....
पता है दोस्तों, उन्होंने मेरे ब्लॉग और मेरे लेखन को बहुत पसंद किया था, कहा था, ''बहुत अच्छा, ऐसे ही लिखती रहो..'' मैं ये बात सोच भी नहीं पा रही हूँ कि नानाजी अब नहीं हैं... जब मैं उनसे मिली थी तो उसके तुरंत बाद उन्हें दिल्ली जाना था क्योंकि 16 जून को उन्हें वहाँ पुरस्कृत और सम्मानित करने के लिए बुलाया गया था... और इस बार उसी दिल्ली में जाकर नानाजी हम सब से बहुत-बहुत दूर चले गए...
हम बच्चों के साथ हँसते-खिलखिलाते नानाजी की ये तस्वीर मात्र चार महीने पुरानी है... इसे देखकर अभी-भी वो सारे पल मेरी आँखों के सामने आ जा रहे हैं... क्या मैं अब नानाजी से कभी नहीं मिल पाऊंगी..????
नहीं, हम बच्चों के प्यारे नानाजी जहाँ कहीं भी हों उनका प्यार और आशीर्वाद उनकी अमर कृतियों के माध्यम से हमेशा हमारे साथ रहेगा... मैं और तो कुछ नहीं कर सकती बस भगवान् से इतनी ही प्रार्थना है कि भगवान नानाजी की आत्मा को शांति प्रदान करें !!!
बहुत दुख हुआ जान कर !
ReplyDeleteडॉ श्रीप्रसाद जी को बचपन मे मैंने भी पढ़ा है।
विनम्र श्रद्धांजलि!
विनम्र श्रद्धांजलि ...नमन
ReplyDeleteश्रद्धांजलि अर्पित करूँ, सादर करूँ प्रणाम ।
ReplyDeleteशान्ति आत्मा को मिले, राम राम जय राम ।
राम राम जय राम, शक्ति परिजन शुभ पायें ।
रविकर का पैगाम, उन्हीं की कृतियाँ गायें ।
शुभकामना अशेष, याद में सदा रहेंगे ।
पढ़िए उनके गीत, सही जो वही कहेंगे ।।
सबकी आँखें नम हैं रुनझुन बेटा. ये सोच कर और ज़्यादा कि अगर वो दिल्ली न जाते तो शायद हमसे इतनी जल्दी इतनी दूर भी न जाते. तुम ये सोच कर धैर्य रखो कि तुम्हें उन जैसे महान व्यक्तित्व से साक्षात् मिलने और कुछ सीखने का अवसर मिला.
ReplyDeleteमौसी...............
प्रिय रुनझुन
ReplyDeleteमुझे बहुत अफसोस है कि तुम्हारे नाना जी हमेशा के लिए हम सबसे बिछुड़ गए हैं ।पहले तो मैं कुछ समझी नहीं पर बाद में याद आया कि पिछली बार जब तुम उनसे मिलने गई थीं तो उसके बारे में अपने ब्लॉग पर लिखा था और मैंने पढ़ा था ।रुनझुन ,असल में तो जिन्हें हम प्यार करते हैं वे हमारे दिल में सदैव रहते हैं ,हमारी बातों में ,विचारों में समाये रहते हैं ,हम उनके क़दमों पर चलने की कोशिश करते हैं फिर बताओ वे कैसे अलग हुये ।आज ही मैंने उनका बाल गीत -हाथी चल्लम चल्लम पढ़ा ।बहुत अच्छा लगा। इतना सुन्दर गीत लिखने वाले महा कवि को मेरा प्रणाम ।
प्रिय रुनझुन आप के कारण ही हम भी उन्हें देख पाए थे बहुत कुछ जान पाए थे और हल्लम हल्लम थल्लम थल्लम की यादें दे नाना जी पर लोक में हमें छोड़ विलीन हो गए क्षोभ हुआ पर सत्य यही है ये दुनिया मर्त्य है ....प्रभु उनकी आत्मा को शांति दे और उनके घर परिवार को इस कमी को झेलने की क्षमता
ReplyDeleteभ्रमर ५
विनम्र श्रद्धांजली
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजली
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