Tuesday, July 3, 2012

सारनाथ.... बौद्ध तीर्थ स्थल





बनारस भ्रमण के अगले दिन हम सारनाथ गए जहाँ भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना पहला उपदेश दिया था इसीलिए यह स्थान बौद्धों का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है..... वहाँ सबसे पहले हम म्यूज़ियम में गए जहाँ सारनाथ की  खुदाई में मिली बौद्धकालीन प्राचीन मूर्तियों के अलावा मुझे वो चीज़ भी देखने को मिली जहाँ से हमारा "राष्ट्रीय चिह्न" लिया गया है यानि अशोक स्तंभ का शेर के मुख वाला ऊपरी भाग (वहाँ कैमरा ले जाने की अनुमति नहीं थी इसलिए हम फ़ोटो नहीं ले सके.. :-( 

वो दूssssर पेड़ों के पीछे पुरातात्विक संग्रहालय 

म्यूजियम से निकल कर हम पुरातात्विक अवशेषों को देखने पहुँचे....  
वहाँ हमने प्राचीन सभ्यता के भवनों के अवशेष, अशोक स्तंभ और घमेख स्तूप देखा.... 


पुरातात्विक भग्नावशेष


वोssss रहा घमेख स्तूप !!!


कितनाssss बड़ाssss !!! 


शिलापट्ट जिसपर घमेख स्तूप का इतिहास वर्णित है


उत्खनित क्षेत्र

खण्डहर देखने के पश्चात हम भगवान बुद्ध का मुख्य मंदिर देखने पहुँचे जहाँ भगवान बुद्ध की स्वर्णिम प्रतिमा है....


सारनाथ स्थित भगवान बुद्ध का मुख्य मंदिर 


लेकिन अफ़सोस उस दिन कुछ विशेष कारणों से मंदिर का पट बंद था अतः मैं भगवान बुद्ध की स्वर्णिम प्रतिमा का दर्शन नहीं कर पाई... मैं दुखी हो गई लेकिन कुछ कर तो सकती नहीं थी इसलिए अगली बार दर्शन करने का मन में निश्चय करके मैं मंदिर के दाहिने तरफ बढ़ी... और वहाँ जाकर मन खुश हो गया.... ये वो जगह थी जहाँ भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के पश्चात अपने पाँच शिष्यों को प्रथम उपदेश दिया था.....  


ये देखिये वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध की मूर्ति.... पाँचों शिष्यों को उपदेश देते हुए... 


यहाँ आकार मेरा मन एकदम प्रसन्न हो गया 


उपदेश स्थल का प्रवेश द्वार


और प्रवेश द्वार के बगल में है ये बड़ी से घंटी


हालाँकि मैं भगवान बुद्ध की स्वर्णिम मूर्ति और देर हो जाने की वजह से वन विहार भी नहीं देख पाई लेकिन फिर भी मुझे यहाँ आकर बहुत अच्छा लगा... किसी भी ऐतिहासिक स्थल की ये मेरी पहली यात्रा थी... इससे पहले मैं वैशाली भी गई हूँ लेकिन तब मैं बहुत छोटी थी इसलिए कुछ भी याद नहीं.....
       अब जब भी मैं स्कूल में सारनाथ के बारे में पढूंगी तो मेरे लिए कितना रोचक होगा सबको ये बताना कि मैं इस पुरातात्विक महत्त्व के स्थल को देख चुकी हूँ...
:-) :-) :-) :-) :-)







Sunday, July 1, 2012

धार्मिक नगरी काशी...



हैलो दोस्तों !!!



गर्मी की छुट्टियों के बाद स्कूल खुलते ही हम सब एकाएक कितने व्यस्त हो जाते हैं ना.... मैं भी पिछले दस दिनों से बहुत बिज़ी थी... रूटीन टेस्ट और पढ़ाई के अलावा  Drawing Competition (Topic- "Save Water") और Poster Making Competition (Topic- "Five Elements of Life") भी हुए... मैंने भी participate किया था... दोनों के ही रिज़ल्ट अभी डिक्लेयर नहीं हुए हैं... जब रिज़ल्ट्स आ जायेंगे तो फिर आप सबको ज़रूर बताउंगी... फ़िलहाल तो अभी इस weekend में मैं काफ़ी रिलैक्स्ड हूँ... और आज आप सबसे ढेर सारी बातें करने के मूड में हूँ... पर कहाँ से शुरू करूँ कुछ समझ में नहीं आ रहा है... नई-पुरानी बहुत सी बातें हैं जो आप सबको बतानी है... लेकिन पहले कौन सी बताऊँ ???... अच्छा चलिए, अभी कुछ ही दिन पहले मैं बनारस से लौटी हूँ तो वहीं की बातें करती हूँ और आपको बनारस-दर्शन भी करवाती हूँ... ठीक है ना!!... तो फिर आइये मेरे साथ बनारस चलते हैं....


ये बातें पिछली गर्मी की छुट्टियों की है.... जब हम बनारस दर्शन के लिए डी. आई. जी. कालोनी से निकले तो हमारा सबसे पहला पड़ाव था काशी विद्यापीठ स्थित "भारत माता मंदिर" इस मंदिर में बिलकुल बीचो-बीच फर्श पर बहुत ही विशाल भारत का नक्शा बना हुआ है... जिसमें सारे प्रदेश, शहर, पहाड़, नदियाँ और समुद्र भी दर्शाए गए हैं... मम्मी ने बताया कि पहले समुद्र और नदियों वाली जगह पर पानी भी भरा रहता था तो और भी सुन्दर और जीवंत लगता था...लेकिन अब उसमें पानी नहीं रहता... लेकिन तब भी मुझे वहाँ बहुत अच्छा लगा... एक  बड़ी ही खास बात थी उस मंदिर में.... जिसे जानने के लिए हमें कुछ सीढियाँ उतरकर एक छोटे से तहखाने जैसी जगह पर जाना पड़ा... वहाँ एक  झरोखा बना हुआ था उसमें से देखने पर हमें हिमालय की सबसे ऊँची चोटी बिलकुल साफ नज़र आ रही थी जबकि ऊपर से देख कर सबसे ऊँची चोटी का पता लगा पाना असंभव लग रहा था...

भारत माता मंदिर के सामने नानी के साथ मैं


हमारी प्यारी भारत माता


जय हिंद!!! जय भारत!!!


इस अनूठे मंदिर को देखने के बाद हम सब दुर्गाकुण्ड स्थित कुष्मांडा (दुर्गा जी) देवी का दर्शन कर थोड़ा सा ही आगे बढ़े और आ पहुँचा "तुलसी मानस मंदिर"... इस मंदिर की विशेषता ये है कि यहाँ श्री राम चरित मानस से जुड़ी झाँकियाँ हैं जो बिजली से संचालित होती हैं... मंदिर में घुसते ही बाएँ हाथ सीढ़ियों के पास तुलसी दास जी की विशाल प्रतिमा है जो अपने सामने रखी पुस्तक (श्री रामचरितमानस) के पन्ने पलट रहे थे और सिर हिलाते हुए श्री रामचरित मानस का पाठ कर रहे थे... हम सारे बच्चे वहीं खड़े होकर आश्चर्य से देखने लगे तभी नानी ने कहा ऊपर चलो अभी और भी बहुत कुछ है..... और सचमुच हमने वहाँ और भी बहुत सारी झाँकियाँ देखी.... 



तुलसी मानस मंदिर


वहाँ से जब हम बाहर निकले तो शाम हो चुकी थी मौसम ठंडा हो चुका था इसलिए कुछ देर हम वहीं मंदिर परिसर में ही बैठे.....


मंदिर परिसर स्थित फौव्वारा


तीन तिलंगे (पंखुरी, मैं और रचित)


रचित,पंखुरी मैं और सार्थक 

ये है प्यारी पंखुरी 


मामी, मम्मी, नानी और मैं... साथ में है मेरी प्यारी गुल्ली


फिर वहाँ से निकलकर हम कुछ ही कदम दूर स्थित "त्रिदेव मंदिर" में गए... ये मंदिर अभी नया बना है... ये मंदिर भी काफ़ी भव्य और आलीशान था... ब्रह्मा-विष्णु-महेश तीनों देवों की मूर्तियां इस मंदिर में थी.....


त्रिदेव मंदिर










ये मेरी प्यारी सी नन्ही सी बहना 






कुछ देर त्रिदेव मंदिर में बिताने के बाद हम सब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित "विश्वनाथ मंदिर" पहुँचे..... मुख्य द्वार से अंदर जाने पर वहाँ विश्विद्यालय के संस्थापक महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी की मूर्ति थी.... 




मुख्य मंदिर में बीचो-बीच एक बड़ा सा शिवलिंग था... इसके अलावा... अगल-बगल तथा ऊपर और भी कई अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां थीं ये मंदिर बिड़ला द्वारा बनवाया हुआ है... इस मंदिर में पहुँचने तक शाम गहरी हो चुकी थी और हमारे कैमरे से फ़ोटो अच्छी नहीं आ रही थी इसलिए मैं इस मंदिर की पुरानी फ़ोटो आपको दिखाती हूँ वो तब की है जब मैं लगभग एक या डेढ़ वर्ष की थी.....









और अंत में हम लंका स्थित संत रविदास पार्क गए... फिर करीब घंटे वहीं पर हमने खूब इन्जॉय किया.... 

मैं और प्रतिमा मौसी... in the mood of full MASTI !!!


और अब तक रात हो चुकी थी इसलिए न चाहते हुए भी लौट के बुद्धू घर को चले....... पर अगले दिन की प्लानिंग करते हुए.......
     








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