Saturday, November 12, 2011

First turning point of Life (जीवन का पहला मोड़)...




हमारी अलबेली रुनझुन ने अपनी उम्र के तीन वर्ष पूरे कर लिए थे और इसके साथ ही वो पहुँच गयी थी अपने बचपन के एक निराले पड़ाव पर.... एक ऐसे मोड़ पर... जहाँ से उसकी दुनिया का विस्तार होना था... जी हाँ बिलकुल ठीक समझे आप.... अब समय आ गया था रुनझुन के स्कूल जाने का... जिसकी रुनझुन को भी बहुत ही बेसब्री से प्रतीक्षा थी... ज्यों ही उसे पता चला कि स्कूल में एडमिशन कराने के लिए फॉर्म लेने जाना है... झट वो भी तैयार हो गयी और मम्मी-पापा के साथ  खुद जा पहुँची अपना एडमिशन फॉर्म लेने...     

प्रभात-तारा स्कूल (मुज़फ्फ़रपुर) के प्रांगण में उत्साहित रुनझुन 

अरे...कितनाsssss बड़ा स्कूल ......!!!!!!!!!!!!

बड़ेssss से स्कूल में छोटी-सी रुनझुन!

अरे वाह! यहाँ तो जानवरों की मूर्तियाँ भी है....
ये देखिये-- हाथी... जिराफ़... 

Wow!... कितने प्यारे-प्यारे फूल भी हैं!!!

चलिए फॉर्म तो आ गया और वापस स्कूल में जमा भी हो गया... रुनझुन को स्कूल पसंद भी बहुत आया... लेकिन रुनझुन स्कूल जाएगी कब...? ...अरे भई! पहले इंटरव्यू देना होगा न... 
....तो जल्द ही रुनझुन फिर स्कूल पहुँची (इंटरव्यू देने)... और वहाँ तो उसने हम-सबको चौका ही दिया (इंटरव्यू देने के लिए उसे हमें छोड़कर अकेले ही दूसरे कमरे में जाना था) ज्यों ही उसका नाम पुकारा गया--"प्रांजलि दीप" ...वो तुरंत कुर्सी पर से कूद पड़ी और फटाफट बड़े ही आत्मविश्वास के साथ दूसरे कमरे में चल दी और हम उसे जाते हुए देखते ही रह गए.....
..... कुछ देर बाद वो हाथ में फ़ाइल लेकर मुस्कुराती हुई बाहर आई... हम जल्दी से उसके पास पहुंचे.... और एकबार फिर इंटरव्यू शुरू...

.....बेटा क्या था अन्दर....?
.....बहुत सारे टॉय थे... और मैम थीं... और बच्चे भी थे!
.....कुछ पूछा तुमसे...?
.....हाँ!
.....क्या..?
.....मेरा नाम... मैंने बता दिया!
.....और क्या पूछा ....
.....लेडीफिंगर दिखाया...पूछा क्या है... मैंने बता दिया!
.....और...?
.....और सर्कल भी पूछा 
.....और...?
.....और....और...(कुछ सोचते हुए)...और नईं याद!!!

और बस ! हमको हमारी उत्सुकताओं, जिज्ञासाओं और सवालों के साथ छोड़ वो अपनी दोस्त के साथ खेलने में मशगूल हो गयी... अपने नए स्कूल में.....




लेकिन बात यहीं ख़त्म नहीं हुई... उस दिन स्कूल से वापस आने के बाद रुनझुन का कौतूहल और भी बढ़ गया और साथ ही बढ़ गयी हमारी परेशानियाँ भी... अब वो रोज़ सुबह उठकर पूछती मम्मी आज स्कूल क्यों नहीं जाना है और फिर बाहर सड़क की ओर यूनिफ़ॉर्म पहनकर स्कूल जाते बच्चों को दिखाकर कहती- मुझे भी  ब्लैक शू और वाईट शर्ट पहन कर स्कूल जाना है... 
....आख़िरकार उसकी इंतजार की घड़ियाँ ख़त्म हुईं...कुछ ही दिनों में  स्कूल से इनविटेशन लेटर आ गया... एडमीशन की औपचारिताएं पूरी हुई और आ पहुंचा वो दिन जब रुनझुन को यूनिफ़ॉर्म पहन कर बैग और वाटर बोतल लेकर स्कूल जाना था... उस दिन रुनझुन बहुत-बहुत खुश थी... सुबह एक ही बार जगाने पर बिना किसी आनाकानी के जल्दी से उठकर फटाफट स्कूल जाने के लिए तैयार हो गई.... 

Ready for the School... 

एक नई दुनिया !!!

रुनझुन के स्कूल का पहला दिन न सिर्फ रुनझुन के लिए बल्कि हमारे लिए भी बहुत ही विशेष था... हमारी नन्ही लाडली अपने जीवन के एक नए दौर में प्रवेश करने जा रही थी... जहाँ उसे अकेले... हमारे बिना... नए लोगों के साथ... नए माहौल में रहना सीखना था... वो कैसे कर पायेगी ये सब... क्या वो रह पायेगी इतनी देर हमारे बिना... वो खुश तो रहेगी न...!!!.....क्या.....कहीं... जैसे अनगिनत सवालों के बीच हम बहुत सहमे हुए थे साथ ही उत्साहित और रोमांचित भी कम न थे... लेकिन हमारी भावनाओं से अनजान हमारी लाडली खुश थी... बहुत खुश... बहुत उत्साहित.....  

First day in first School !!!

....लेकिन ये क्या!.... वो स्कूल हमारी भावनाओं से बिलकुल भी अनजान न था... जब हम वहाँ पहुंचे तो सारे अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ प्रांगण में एकत्रित होने के लिए कहा गया... और फिर वहाँ सारे अभिभावकों द्वारा दाहिना हाथ अपने बच्चे के सिर पर रखवाकर शपथ दिलवाई गई... जिसका सारांश कुछ-कुछ यूँ था....

.....हम अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की राह में सदैव उसके सहयोगी और पथ-प्रदर्शक बनेंगे.... हमारा बच्चा बड़ा हो रहा है और आज वह ममता के आँचल की कोमल नर्म छाँव से निकल इस संसार की कंकरीली-पथरीली राह पर कदम बढ़ाने जा रहा है... हो सकता है शुरू-शुरू में वो इसपर चलने में थोड़ा डगमगाए-लड़खड़ाये या गिर भी पड़े... लेकिन हम उसे हिम्मत नहीं हारने देंगे... बल्कि कदम-कदम पर उसका हौसला बढ़ाएंगे... उसे उत्साहित करेंगे... उसे और उर्जावान बनाकर नयी चुनौतियों का सामना करने में मददगार बनेंगे... हमारी ममता को हम अपने बच्चों की कमज़ोरी नहीं बल्कि ताक़त बनायेंगे.... और...और...और.... 

....प्रधानाध्यापिका और भी बहुत कुछ कह रहीं थीं... लेकिन तब-तक पूरे प्रांगण में जज़्बातों के सैलाब उमड़ पड़े थे... हर आँख नम थीं.... हर हाथ काँप रहे थे... होठ थरथरा रहे थे.... ये सब कुछ हमारे लिए बिलकुल नया था... अकल्पनीय... अकथनीय... पूरी तरह से भावुक  हो चुके उस पल में प्रधानाध्यापिका की आवाज़ (आश्वस्त सी करती हुई) फिर गूँज उठी........ 

....आप बिलकुल चिंता न करें आपके इस कार्य में हम बराबर आपके साथ हैं जितने प्यार और लगन से आपने अपने पौधे को सींचा है उतना ही प्यार...उतना ही दुलार हम भी उसे यहाँ देंगे... हाँ, बस थोड़े अनुशासन के साथ... आपका बच्चा आपके ममता भरे आँचल से निकल कर जब यहाँ आयेगा तो यहाँ भी उसे एक माँ मिलेगी अपनी टीचर के रूप में... जो पूरे स्नेह और ममत्व के साथ उसकी देखभाल करेगी... उसे विकसित करेगी... बस! आपका विश्वास और सहयोग चाहिए...फिर देखिएगा कैसे आप और हम मिलकर इस देश के एक सुन्दर भविष्य का निर्माण करेंगे.... 

...ऐसी ही कुछ और बातों के साथ हमारा दिल...  हमारा विश्वास जीतते हुए उन्होंने अपनी बात समाप्त कर दी.... और हम उनकी मीठी आवाज़ के जादू में बंधे अपनी सारी शंकाओं-कुशंकाओं को वहीं दफ़न कर बड़े ही भावुक लेकिन प्रसन्न मन से घर आ गए... घर के दरवाज़े पर पहुँच कर मैं ठिठक पड़ी... कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही थी... क्या ये सब सच था ?... मैंने तो ऐसा पहले कभी सुना नहीं... लेकिन नहीं... ये सब सच था.... और अब मैं भी खुश थी.... बहुत खुश....सचमुच मेरी बेटी के स्कूल का वो पहला दिन मेरे लिए भी बहुत विशेष था जो आज भी मुझे रोमांचित कर देता है...  आज रुनझुन उस स्कूल में नहीं है... लेकिन उसकी स्मृति आज भी मुझे गौरव से भर देती है कि मेरी बेटी के जीवन की नयी शरुआत ऐसे स्कूल से हुई.....

Hats off to Prabhat-Tara...&...Hats off to the Headmistress of Prabhat-Tara School....!!!   


With a sister of Prabhat-Tara 



Thursday, September 22, 2011

बढ़ता बचपन...




रुनझुन के जन्म की तीसरी वर्षगाँठ... जी हाँ 7 नवंबर 2004 को रुनझुन ने अपनी उम्र के तीन वर्ष पूरे कर लिए और अपनी इस खुशी को रुनझुन ने पास की गरीब बस्ती के बच्चों को खाना खिलाकर बिलकुल ही निराले अंदाज़ में मनाया... और हाँ इस दिन स्वाति बुआ ने रुनझुन को अपने हाथों से बनी एक बहुत ही सुन्दर सी टोकरी भी उपहार में दी थी... आइये आपको भी दिखातें हैं वो प्यारी सी टोकरी....

टॉफी से भरी ये टोकरी स्वाति बुआ ने दी 

कित्तीssssss प्यारी है न!!!!!


कहते हैं न कि पूत के पाँव पालने में ही नज़र आ जाते हैं... भई ये कहावत तो हमें भी चरितार्थ होती नज़र आई जब हमने मात्र तीन वर्ष की रुनझुन को रंगोली के रंगों में रूचि लेते हुए देखा... जी हाँ, मौका था दीपावली का... मम्मी ने सोचा दोपहर में अभी रुनझुन सो रही है, उसके उठने से पहले जल्दी से एक छोटी सी रंगोली बना लूँ... लेकिन ये क्या अभी तो मात्र आधी ही रंगोली बन पाई थी कि रुनझुन उठकर मम्मी के पास आ गयी.... " मम्मी तुम क्या कर रही हो.... ये कैसे बना रही हो... इसे क्या कहते हैं...." जैसे प्रश्नों कि झड़ी लग गयी... मम्मी ने सोचा अब तो बन चुकी रंगोली... लेकिन नहीं बिटिया रानी ने अपने सारे प्रश्नों का उत्तर पाने के बाद मम्मी को रिमार्क दिया... "सुन्दर है!"... और चुपचाप बैठकर देखने लगी फिर थोड़ी देर बाद रंगों को सजाने में मम्मी की मदद भी की....रंगोली पूरी बन गयी तो मम्मी ने कहा... 'रुनझुन ने रंगोली बना ली'... और फिर क्या था बेटी एकदम खुश!!!.... शाम को रुनझुन ने अपनी दोस्त सिम्पी दीदी को भी रंगोली दिखाई... फिर दोनों ने साथ मिलकर रंगोली पर दीये जलाये और दीवाली मनाई..... 


इसमें रुनझुन की नन्ही कोमल उँगलियों ने भी रंग भरे हैं 

सिम्पी दीदी के साथ रुनझुन 

Dwali celebration with full precaution!!!   


जन्मदिन और दीवाली के बाद नया वर्ष आ गया... अब तो रुनझुन बड़ी और समझदार हो गयी थी... अब उसे "हैप्पी न्यू इयर" का मतलब भी पता चल गया था... तो इस बार बेटी ने मम्मी से तीन केक बनाने की फरमाइश की... मम्मी हैरान! तीन केक किसलिए...?... खैर, अब बेटी की फरमाइश थी, पूरी तो करनी ही थी... मम्मी ने तीन केक बना दिया... इस तीन केक का राज़ बाद में पता चला... नहीं समझे न!.... अभी पता चल जायेगा....


31st दिसंबर 2004 की रात एक केक पापा के साथ काटा गया...

दूसरा मम्मी के साथ और.....

तीसरा 1st जनवरी 2005 को दिन में सिम्पी दीदी के साथ 

फिर दोनों ने एक दूसरे को केक खिलाकर नए वर्ष की बधाई भी दी 

और बस यूँ ही हर बढ़ते पल के साथ रुनझुन का बचपन भी नयी-नयी जिज्ञासाओं और कोतूहल के बीच बढ़ने  लगा... हम भी बेटी के इस विकास क्रम को उतने ही कौतूहल के साथ निरख-निरख आनंदित होते रहते....


Monday, September 19, 2011

बूझो तो कौन....


इन्हें पहचानते हैं... क्या कहा कभी देखा नहीं..? अरे नहीं..नहीं...ज़रा गौर से देखिये आप इन्हें बहुत ही अच्छी तरह से जानते हैं... जी हाँ बिलकुल सही कहा...ये वही हैं अपनी नटखट नन्ही गुड़िया "रुनझुन".... अब सोचने वाली बात ये है की इनका ऐसा हाल कैसे हो गया... तो भई ये रुनझुन की शरारतों का एक छोटा सा नमूना है... घर में रंग-रोगन का काम चल रहा था और रुनझुन को बड़ी ही आसानी से नील का पूरा भरा हुआ एक बड़ा सा डिब्बा मिल गया... तो बस उसका उपयोग कुछ यूँ किया गया... मम्मी को पता चला तो काफी नाराज़ होकर वहाँ पहुंची लेकिन बिटिया रानी की हालत देखकर हंसी आ गयी और पहले उनकी इस छवि को कैमरे में कैद कर लिया गया....

इतना ही नहीं रुनझुन शांत रहकर चुपचाप ऐसी अनोखी शरारतें अक्सर किया करती थी, कहीं भी कोने में छुपकर कुछ न कुछ ऐसा ही रचनात्मक काम अक्सर हुआ करता था.... एक बानगी और भी देखिये... पापा के मैपिंग स्टिकर का कितना सुन्दर उपयोग हुआ है... जब पापा अचानक वहाँ पहुंचे तो डर गयी कि अब तो डांट पड़ने वाली है...... लेकिन अब इतनी भोली सूरत देखकर भला गुस्सा किसे आता..?...पापा को हंसी आ गयी और बस बेटी  को लगा कि उसने कोई तीर मार लिया है...वो भी खुश हो गई....




लेकिन हाँ, ऐसा नही है कि रुनझुन सिर्फ शरारतें ही करती थी बल्कि यूँ ही खेल-खेल में सबकी नक़ल करते-करते, सबको देखते-देखते बहुत कुछ बड़ी ही तेज़ी से सीखती भी जा रही थी... तो आइये रुनझुन की नक़ल की इस अकल को भी ज़रा परखते हैं....

पापा के साथ डिसकशन
(अखबार की खबरों पर) 


और बता सकते हैं यहाँ नीचे क्या हो रहा है.... नहीं..?.... ज़रा गौर से देखिये.... जी हाँ! रुनझुन बिटिया बुआ नानी और गुड़िया मौसी के साथ मेडिटेशन कर रही हैं.....

ओssssssमssssssssssssssssss!!!!!!


चलिए ये तो रही नक़ल की बात लेकिन हमारी बिटिया रानी को पढ़ाई का भी इन दिनों कुछ ज्यादा ही शौक हो गया था, किताबों और कापियों के साथ भी अब इनकी दोस्ती हो गयी थी... और पढ़ने की स्टाइल... अरे भई एक दम नायाब... देखिये ज़रा आप भी गौर फरमाइए....

अरे हाँ! किताब की ओर ध्यान मत दीजिएगा  

क्यों! कुछ याद आया..?.... अरे हम सब भी तो कभी-कभी कुछ खाते हुए पढ़ते या फिर पढ़ते वक्त यूँ ही कुछ खाते हैं न...?... तो फिर बेटी किसी से कम थोड़े ही न है...


हाँ, किताब उल्टी है तो क्या हुआ... 
चित्र तो कैसे भी देखा जा सकता है....


पढ़ने के साथ-साथ अब लिखने की भी शुरुआत हो चुकी थी... और ये काम भी बड़ी ही लगन और तन्मयता के साथ होता.... 'round-round circle' तो खूब सारा और सुन्दर-सुन्दर बनता ही, कभी-कभी 'Triangle' भी बन जाता और कभी-कभी तो सचमुच जादू हो जाता जब बेटी के हाथों 'A' बन जाता और वो बिलकुल "यूरेका-यूरेका" वाली स्टाइल में उछलती-कूदती, खुश होती..."मम्मीssss देखो! मैंने 'A' लिख लियाssssss मैंने 'A' लिख लियाssss....."   




कापी, किताब, पेन और पेन्सिल के अलावा और भी दूसरे माध्यमों के साथ रुनझुन कुछ न कुछ सीख रही थी... ये देखिये.... की बोर्ड और माउस के साथ यहाँ क्या हो रहा है....

एनिमेटेड गणेश पूजा 

और अब कुछ गीत-संगीत भी....


 म्यूजिकल ABC


तो देखा आपने व्यावहारिकता के साथ ही दृश्य-श्रव्य माध्यमों का भी भरपूर इस्तेमाल कर रुनझुन सतत सीखने की प्रक्रिया में किस तरह संलग्न है.... उसकी यही सीखने की प्रक्रिया और रचनात्मकता आज तक निर्बाध गति से यूँ ही चल रही है... 

Saturday, September 10, 2011

अनूठे दोस्त !!!


मिलिए इनसे... ये हैं हमारी नन्ही  Gardener  इन्हें पौधों से बहुत प्यार है... बल्कि यूँ कह सकते हैं कि पौधे इनके सबसे अच्छे दोस्त हैं... तो आइये ज़रा झाँकते हैं रुनझुन के अनोखे दोस्तों की इस हरी-भरी दुनिया में...


घंटों पौधों के पास बैठकर उनसे ढेरों बातें करना, प्यार से पत्तियों को छूना, रुनझुन को बहुत पसंद है, उन्हें वो कभी-भी तोड़ती या नुकसान नहीं पहुँचाती है... बल्कि उनके साथ खूब खेलती है और खेलते-खेलते जब इन दोस्तों को प्यास लगती है तो उन्हें पानी पिलाने का काम रुनझुन खुद ही करती है...


ये देखिये ये है "जग" मेरे दोस्तों को पानी पिलाने के लिए 

हाँ, "जग" की साइज़ ज़रा ज़्यादा बड़ी है इसलिए थोड़ी मुश्किल तो ज़रूर होती है लेकिन कोई बात नहीं दोस्तों के लिए इतनी परेशानी तो उठाई ही जा सकती है...

आइये आपको कुछ और दिखाती हूँ...

...एक दोस्त, जो कहीं छुपा बैठा है... ये देखिये... वो यहाँ है...

इसे भी तो प्यास लगी होगी न!!!

और फिर... 


कुछ दिनों बाद.... 


उन दोस्तों ने भी दोस्ती का सुन्दर सा उपहार अपनी इस नन्ही सी दोस्त को दिया... 

Wow! कितनेsss प्यारे गुलाब!!!

सचमुच! ये हैं मेरे सबसे अच्छे दोस्त!

छोटे-छोटे लेकिन बहुत ही प्यारे!!!


बिलकुल अनूठे बड़े ही न्यारे है मेरे दोस्त! ये न तो कभी आपस में लड़तें-झगड़ते हैं और न ही कभी मुझसे नाराज़ होतें हैं... ये तो बस मेरे साथ नाचते-गाते, झूमते-मुस्कुराते, खेलते हैं और खुश होकर मुझे रंग-बिरंगे सुगन्धित फूल, ढेर सारा ऑक्सीजन और खूब सारी ठंडी-ठंडी हवाएँ गिफ्ट देते है... है न ये बिलकुल
अनोखे और अनमोल दोस्त!!!




Monday, September 5, 2011

प्यारी सी गुड़िया...




 बड़ी-बड़ी, गोल-गोल आँखों वाली भोली सी रुनझुन...

ममता की छाँव में...!


 मीठी मुस्कानों वाली मासूम गुड़िया... अब धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी...

Barbie Doll in her Cabinet...!!!

अब वो नन्ही सी गुड़िया खुद गुड़ियों से खेलने लगी थी...

Doll with doll...!!!

अगर आपने उसकी गुड़िया माँगी तो... देखिये वो कैसे अपनी गुड़िया के साथ भाग खड़ी होती...

भागोss!...छोटी मौसी गुड़िया लेने आ रही है...
(क्योंकि ये छोटी मौसी की गुड़िया है...ही-ही-ही) 


हाँ, बाल्टी का रोल ज़रूर थोड़ा बदल गया...

अब ये छुपने के काम आने लगी...


पहले केक पसंद नहीं था, और अब... केक दिख गया तो ले के भाग खड़ी होती...

मुझे पूरा केक खाना है...

रीझती-रिझाती, हँसती-हँसाती इस मासूम कली का सरस्वती पूजा के दिन विद्यारम्भ संस्कार हुआ...

ये पूजा पंडाल भईया लोगों ने बनाया है... अच्छा है न!!!


 दादू ने पूजा कराई... स्लेट पर स्वस्तिक बनवाकर और ओम लिखवाकर रुनझुन की पढ़ाई का शुभारम्भ करवाया...

पहले स्वस्तिक!

और फिर ओम!!!


धीरे-धीरे रुनझुन ने नयी-नयी कलाएँ भी सीखनी शुरू कर दी... आइये! एक झलक इधर भी देखिये, क्या-क्या नए-नए गुर सीखे बिटिया रानी ने....



अब ये लीजिए! इन्हें इस मेमने के साथ खेलना है...

कुछ मिमिक्री भी हो जाये!!!

मस्ती! पीयूष मामा और शुभम के साथ

और अब थोड़ा डांस भी..!!!

ये देखिये बिटिया ने साईकिल भी चला ली...
वो भी बड़ी वाली...हा-हा-हा!!!

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